फेसबुक-वाट्सएप की गिरफ्त में युवा

रायपुर। फेसबुक और वाट्सएप्प के तेजी से बढ़ते प्रयोगों ने लोगों की सोचने-समझने कीशक्ति सुन्न कर दी है। आज इनका चलन इतना हो चला है कि इसके बिना लोग अपने आपको अधूरा पाते हैं। खासकर युवा इसकी गिरफ्त में ज्यादा है। युवाओं का रुझान फेसबुक और वाट्सएप्प पर इस कदर है कि उनकी दिन की शुरूआत फेसबुक और वाट्सएप्प् से शुरू होकर रात इसी पर खत्म होती है। तकनीक का इतना इस्तेमाल हरेक की जरूरत कम और मानसिक बीमारी ज्यादा दे रहा है।
तकनीक के कम से कम इस्तेमाल और इसके दुष्परिणामों की लगातार चेतावनी को अनदेखी करता युवामन इसमें उतनी ही तेजी से डूबता जा रहा है। ज्यादा रोकने और मनाही पर सिर्फ ही जवाब- समय की मांग है। समय की मांग और आधुनिकता का लबादा ओढ़े ये एप्प युवाओं को किस दिशा में ले जा रहे हैं, ये सभी भलीभांति जानते हैं, पर इस्तेमाल पर कटौती शायद ही कोई कर पाता हो।
युवा दिनभर कितने लाइक्स, कितने कमेंट मिलेंगे, इसी पर लगे रहता है। युवा घर, परिवार और नौकरी छोड़कर अपना पूरा दिन उस पर ही व्यर्थ कर देते हैं, वह सिर्फ अपनी प्राथमिकता फेसबुक और वाट्रसएप तक ही सिमित रखे हुए है।
एक सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में 1 अरब 28 करोड फेसबुक प्रयोगकर्ता है। हाल ही में छतीसगढ़ के निजी डिजिटल मार्केटिग के द्वारा कराए गए रिसर्च के अनुसार छतीसगढ में सबसे ज्यादा फेसबुक का इस्तेमाल किया जाता है। छतीसगढ के रायपुर ,बिलासपुर, भिलाई, अंबिकापुर, रायगढ़, कोरबा में इसके उपयोगकर्ता हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा रायपुर में इसको चलाया जाता है। वर्तमान मे कॉलेज जाने वाले 70 से 80 फीसदी स्टूडेट इसका इस्तेमाल करते हैं। इसमे 15 साल से लेकर 80 साल तक के लोग शामिल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि फेसबुक-वाट्सएप्प का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा दो या ढाई घंटे तक ही करना चाहिए। अगर इससे ज्यादा हम इसका प्रयोग करते हैं या हर 10-10 मिनट में हम चेक करते हैं तो ऐडिकशन या डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं। अगर हम लम्बे समय से फेसबुक और वाट्रसएप का प्रयोग करते आ रहे हैं तो हमें, ओसीडी, आत्सोसिट कपल्सिव डिसआइट नामक बीमारी हो सकती है। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को बेमतलब के विचार और चिंता होने लगती है। इसका मुख्य कारण मस्तिष्क मे कुछ रसायनों के स्तर में गडबडी होना है। इसके कारण व्यक्ति बार बार अपनी सोशल साइट चेक करते रहता है व अपनी अपेक्षा दूसरे लोगों से करता रहता है इससे हमारे जीवन पर गहरा असर पडता है इसका उपयोग कम समय के लिए ही किया जाना चाहिए।
मनोचिकित्सक डॉ. सोनल शुक्ला का कहना है कि वर्तमान में कालेज जाने वाले 70 से 80 प्रतिशत स्टूडेट इससे प्रभावित है। इसमें 15 साल से लेकर 80 साल तक के लोग शामिल हैं। अगर हम इसका प्रयोग करते हैं या हर 10-10 मिनट मे हम चैक करते है तो ऐडिकशन या डिप्रेशन के शिकार हो सकते हैं।