
रायपुर। राफेल घोटाला भारत का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला है, जो साफ तौर से भ्रष्टाचार का स्पष्ट मामला है। मोदी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने असत्य कथन व झूठे बयान देकर संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया गया है। उक्त जानकारी पत्रकारों से चर्चा के दौरान अजय माकन ने दी।
उन्होंने बताया कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार के ‘झूठ के पुलिंदेÓ का भंडाफोड़ कर दिया हैं। राफेल घोटाला सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने, देशहित के साथ समझौता करने, देश की सुरक्षा को कमजोर करने, सरकारी कंपनी, ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल)’ की अनदेखी करने एवं ‘पूंजीपति मित्रों’ को फायदा पहुंचाने का दुखद एवं घिनौना वृत्तांत है। राफेल घोटाले में 7 महत्वपूर्ण तथ्य हैं
राफेल’ का मूल्य – सरकारी खजाने को 41,205 करोड़ का नुकसान! कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान 12 दिसंबर, 2012 को खुली अंतर्राष्ट्रीय बोली के अनुसार 126 राफेल लड़ाकू जहाजों में से प्रत्येक लड़ाकू जहाज का मूल्य 526.10 करोड़ रु. यानि 36 लड़ाकू जहाजों का मूल्य 18,940 करोड़ रु. था। मोदी सरकार ने 36 राफेल लड़ाकू जहाज 7.5 बिलियन यूर (1670.70 करोड़ रु. प्रति लड़ाकू जहाज) यानि 36 जहाजों के लिए 60,145 करोड़ रु. में खरीदे। इस सौदे में सरकारी खजाने को 41,205 करोड़ रु. का चूना लगाया हैं।
30,000 करोड़ रूपए का ‘ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट’ पीएसयू – हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के हाथों से लेकर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस कंपनी को दे दिया गया। 13 मार्च 2014 को एचएएल एवं राफेल-डसॉल्ट एविएशन के बीच एक वर्कशेयर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए। 25 मार्च 2015 को डसॉल्ट की सीईओ बैंगलोर में एचएएल की फैक्ट्री में गए और एयरफोर्स चीफ के सामने एचएएल-डसॉल्ट के संबंधों के बारे में बात की।
8 अप्रैल 2015 को विदेश सचिव ने भी एचएएल-राफेल के समझौते को स्वीकार कर लिया। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड एवं रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को एचएएल के चालीस सालों के अनुभव के सामने लड़ाकू जहाज बनाने का शून्य अनुभव है। प्रधानमंत्री मोदी ने एचएएल से 30,000 करोड़ रु. का कॉन्ट्रैक्ट छीनकर पब्लिक सेक्टर की कंपनी से ज्यादा निजी कंपनी के हितों का ख्याल क्यों रखा रिलायंस कंपनी की वेबसाईट आरइन्फ्रा ने यह दावा भी किया है।
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