रायपुर। बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस अंदाज से बातचीत की है उससे राजनीतिक हलकों में कई कयासों को जन्म दे गया…? छत्त्तीसगढ़ प्रवास के दौरान जिस तरीके मोदी और कमलचंद्र भंजदेव के बीच जो संवाद हुए उससे यह स्पष्ट हो गया है कि छत्तीसगढ़ दृष्टिकोण से बस्तर के राजपरिवार का क्या महत्व है। मोदी जब एयरपोर्ट से उतरे तो उनके चेहरे पर स्थिरता के भाव थे। भाजपा के नेताओं से पुष्प गुच्छ लेने के दौरान भी वे शांत ही रहे। उल्टे दो-तीन भाजपा नेताओं ने जब उनके पैर छुएं तब उनके चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव ही प्रकट हो गए। उन्होंने लाइन से भाजपा के तीन नेताओं को डांट भी पिला दी। ऐसी परिस्थितियों में जब वो राज्य युवा आयोग के अध्यक्ष और बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव के पास पहुंचे तब न केवल उन्होंने स्वयं से अपना हाथ उनकी ओर बढ़ाया अपितु चेहरे पर प्रसन्नता लाते हुए उनसे थोड़ी देर तक संवाद भी किया। 70 के दशक से राजनीति से लगभग पूरी तरह बाहर रहे बस्तर राजपरिवार के सदस्य से प्रधानमंत्री मोदी का इस तरह मिलना कई तरह की राजनीतिक कयासों को जन्म दे गया है।
बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव लंदन से पढ़े हैं। उन्होंने लंदन से इंटरनेशनल बिजनेस की पढ़ाई और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स से राजनीतिशास्त्र के पोस्ट-ग्रेजुयेट की पढ़ाई की है। साल-2010 में वो बस्तर लौटे। उनके बस्तर लौटने के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियों में उन्हें अपनी ओर खींचने की होड़ लग गई थी। इसका सबसे प्रमुख कारण बस्तर भर में बस्तर राजपरिवार के प्रति व्याप्त सम्मान था। राजनीतिक दलों के कर्ताधर्ता ये जानते थे कि राजपरिवार के नवयुवक कमलचंद्र के एक संकेत पर बस्तर की सीटें उनकी झोली में गिर जाएंगी। हर तरह के मिल रहे ऑफर के बीच कमलचंद्र ने सर्वप्रथम अपनी जड़ों को मजबूत करने का निर्णय लिया। वो तीन साल तक बस्तर के गांवों में भ्रमण करते रहे। उन्होंने अपनी प्रवीर सेना का भी गठन किया। अब इस सेना में बस्तर के 27 लाख आदिवासी सदस्य बन चुके हैं। बस्तर की स्थितियों को समझने के बाद अंतत: उन्होंने साल-2013 में भाजपा में आना तय किया। वास्तव में अगर वो चाहते तो भाजपा उनके आगमन के साथ ही साल-2013 में उन्हें विधानसभा भेजने को तैयार हो जाती पर उन्होंने जिस तरह से पहले बस्तर की स्थिति को समझने का प्रयास किया, ठीक उसी तरह से उन्होंने टिकट के ऑफर को अस्वीकार भी कर दिया। वे अपने राजनीतिक जीवन के पहले चुनाव में भाजपा के लिए जोर-शोर से जुट गए। विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने संकल्प से भाजपा को बस्तर की 4 सीटें दिलवाई। लोकसभा का चुनाव जितवाया। कहा ये भी जा रहा है कि विधानसभा में टिकट अस्वीकार करने के बाद उन्हें लोकसभा में प्रत्याशी बनाने का भाजपा ने प्रयास किया पर उन्होंने तब भी उन्होंने लंबी पारी को देखते हुए ही निर्णय लिया। अब इस साल के अंत में छत्तीसगढ़ में फिर से विधानसभा चुनाव होने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आज की यात्रा और उस यात्रा के दौरान कमलचंद्र से ही उनकी आत्मीयता भरी बातें आज भी बहुत कुछ कहने के लिए पर्याप्त हैं। स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव में बस्तर की सभी 12 सीटों को लेकर कमलचंद्र की राय महत्वपूर्ण होगी। अब ये भाजपा के रणनीतिकारों के उपर है कि वो मोदी जैसे व्यक्तित्व के संदेश को कितना समझ पाते हैं ?
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