मनुस्मृति जलाकर सिगरेट पीने और चिकन पकाने वाली एक लड़की का वीडियो वायरल हो रहा है. इस लड़की का नाम प्रिया दास है और वह बिहार के शेखपुरा की रहने वाली हैं. 27 साल की प्रिया दास, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के महिला प्रकोष्ठ में प्रदेश सचिव हैं. आज तक ने प्रिया दास से बात की और पूछा कि आखिर उन्होंने मनुस्मृति क्यों जलाई?
प्रिया दास ने बताया कि उन्होंने करीब 500 रुपये में मनुस्मृति खरीदी थी. उन्होंने बताया मनुस्मृति में ये लिखा है कि अगर महिला मदिरापान करती है तो उसे कई प्रकार के दंड दिए जा सकते हैं. साथ ही न्याय करने से पहले संबंधित लोगों की जाति पता लगाने की बात लिखी गई है.
मेरा उद्देश्य किसी की भावना को आहत पहुंचाना नहीं बल्कि बहुजन समाज में जागरूकता लाना है
जो ग्रंथ महिलाओं को समानता नहीं देता उसको जला देना ही उचित है? अंधविश्वास पाखंड वाद और ढोंग के विचारों पर वार करना मेरा उद्देश्य है? मनुस्मृति दहन बाबा साहब ने
25 दिसंबर 1927 की थी @Vndnason pic.twitter.com/W2j7PAxE2p— Shiv Kumar Chawla ASP (@shiv__ASP) March 6, 2023
मैं न नॉनवेज खाती हूं, न सिगरेट पीती हूं
ट्विटर पर मनुस्मृति जलाकर सिगरेट पीने और चिकन पकाने के वीडियो को अब तक कई लाख लोगों ने देखा है. सैकड़ों लोगों ने मनुस्मृति जलाने को गलत बताया है. हालांकि, बहुत ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने प्रिया के सिगरेट पीने और चिकन पकाने का भी विरोध किया है. लेकिन आज तक से बातचीत में प्रिया दास कहती हैं- मैं न नॉनवेज खाती हूं, न सिगरेट पीती हूं. यानी प्रिया दास ने सिर्फ विरोध दर्ज कराने के लिए वीडियो में चिकन पकाया था और सिगरेट पीती दिखी थी.
राजनीति के साथ-साथ प्रिया पढ़ाई कर रही हैं और टीचर बनने की कोशिश में भी लगी हैं. प्रिया ने CTET पास कर लिया है. उन्होंने बताया कि पीएचडी के लिए भी कोशिश कर रही हैं.
खुद को दलित एक्टिविस्ट कहने वाली प्रिया दास एक और वीडियो कहती हैं- मनुस्मृति जलाना तो एक एक्शन है, एक तात्कालिक घटना है. इसको जलाने की नींव बहुत पहले बाबासाहेब ने रख दी थी. मनुस्मृति को जलाने का मकसद किसी व्यक्ति के प्रति नहीं है. बल्कि यह घटिया, पाखंडवाद और ढोंग के विचारों पर वार करना है. यही मेरा मकसद था.
प्रिया दास ने कहा कि यह तो बस शुरुआत है. ऐसी किताब को तो अस्तित्वविहीन कर देना है. यह किताब कहीं से भी सही नहीं है. किसी भी किताब से व्यक्ति को ज्ञान मिलता है. लेकिन, यह किताब ऊंच-नीच, भेदभाव और लोगों को बांटने का काम करती है. ऐसे में इस तरह की किताब का तो विरोध होना ही चाहिए.
Add Comment