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कहानी उस महाराजा की जिसने बंटवारे में भारत को चुना… बाद में मिला देश निकाला…

नई दिल्‍ली: जब भारत अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ तो दो नए देश बने- भारत और पाकिस्‍तान। दोनों चाहते थे कि ज्‍यादा से ज्‍यादा रियासतें उनकी तरफ आ जाएं। राजाओं, महाराजाओं, नवाबों को अपना भविष्‍य अंधकार में दिख रहा था। इन्‍हीं में से एक थे बड़ौदा के महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़। ज्‍यादातर रियासतें आजाद रहना चाहती थीं मगर सैन्‍य क्षमता के लिहाज से कमजोर थीं, इसलिए भारत या पाकिस्‍तान में से किसी एक के साथ जाना कबूल कर लिया।

29 जून, 1908 को जन्‍मे महाराजा प्रताप सिंह ने 1939 में गद्दी संभाली थी। वे बिल्‍कुल नहीं चाहते थे कि उनका राजपाट चला जाए। ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लैरी कॉलिंस और डोमिनीक लापिएर लिखते हैं कि जब तत्‍कालीन गृह सचिव वीपी मेनन महाराजा के पास इंस्‍ट्रूमेंट ऑफ एक्‍सेशन लेकर पहुंचे तो महाराजा ने साइन जरूर कर दिए, मगर उसके बाद मेनन की बांहों में फूट-फूटकर रोए।

महाराजा की अय्याशियों के तमाम किस्‍से मशहूर
गायकवाड़ राजघराने की परंपरा थी कि दो शादियां नहीं होंगी। महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ के दादा ने यह कानून बनाया था जो 1940 के दशक में टूट गया। प्रताप सिंह राव को सीता देवी से प्‍यार हो गया। सीता पहले से शादीशुदा थीं और तीन बच्‍चों की मां थी। किसी तरह सीता ने अपने पति से तलाक लिया। अंग्रेजों के तमाम विरोध के बावजूद महाराजा प्रताप सिंह ने सीता से शादी कर ली।

महाराजा दोनों हाथों से दौलत लुटाते थे। विदेशों की सैर पर खूब जाते थे। एक बार वह और सीता देवी अमेरिका गए तो 10 मिलियन डॉलर उड़ा डाले। 1945 में महाराजा ने रेस के लिए एक घोड़ा खरीदा और उसके लिए 11,76,000 डॉलर चुकाए। उस घोड़े के लिए खासतौर पर पूरा फार्म खरीदा गया। इन अय्याशियों के किस्‍से अखबारों की सुर्खियां बनते थे। 1947 में भारत को स्‍वतंत्रता मिली और महाराजा के लिए नई मुसीबत आ गई।

सरकार को चलाना ही पड़ा चाबुक
अंतरिम सरकार के कानों तक महाराजा की अय्याश-मिजाज जिंदगी के किस्‍से पहुंच रहे थे। बड़ौदा के शाही खजाने का ऑडिट कराया गया। पता चला कि महाराजा ने खजाने से कई ब्‍याज-मुक्‍त कर्ज ले रखे थे। सरकार ने चुकता करने को कहा तो महाराजा ने साल-दर-साल भुगतान का वादा क‍िया। महाराजा की सालाना कमाई उस समय 8 मिलियन डॉलर थी।

धोखाधड़ी की बात फैल रही थी। 1951 में भारत सरकार ने महाराजा प्रताप सिंह राव गायकवाड़ को देश से निकाल दिया। गद्दी पर उनके बड़े बेटे फतेहसिंह राव गायकवाड़ बैठे। महाराजा ने कुछ वक्‍त इंग्‍लैंड में ब‍िताया और फिर मोनाको में बस गए। 1956 में उन्‍होंने सीता देवी को तलाक देकर लंदन का रुख किया। वहीं जिंदगी के आखिरी दिन गुजरे। 19 जुलाई, 1968 को महाराजा ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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