सड़क बनाते समय ड्रेनेज सिस्टम का ख्याल नहीं रखा गया है। या तो नालियों में कब्जा हो गया है या फिर सड़क बनाते समय नाली ही नहीं बनाई गई है। इसके अलावा सड़कों में स्लोप भी नहीं बनाया गया है। कुछ स्थान ऐसे हैं, जहां पानी आकर भरता ही है, लेकिन वहां पर पानी निकासी की उचित व्यवस्था नहीं की गई है।
बारिश के पहले नगर निगम, लोक निर्माण विभाग और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने अपने-अपने हिस्से आनेवाली सड़कों का मेंटेनेंस कराया। इसमें लोक निर्माण विभाग ने अपने प्रत्येक जोन में 2-2 करोड़ के काम कराए। नगर निगम भिलाई ने भी अपने चारों जोन में 25-25 लाख देकर एक करोड़ का काम कराया।
इसी तरह एनएचएआई ने भी नेहरू नगर से टाटीबंध तक के विभिन्न स्थानों पर पैच वर्क कराया। इसमें करीब 10 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इस तरह तीनों एजेंसियों ने मिलकर 6 महीने में कुल 19 करोड़ रुपए खर्च किया है। फिर भी बारिश में सड़कें उखड़ गई हैं। जहां-तहां बारिश का गंदा पानी भरा हुआ है।
एनएच में जंजगिरी से कुम्हारी तक सड़क उखड़ी
नेशनल हाइवे में चरोदा में हनुमान मंदिर के पास, जंजगिरी मोड़ से आगे साईं मंदिर से लेकर कुगदा तक दुर्ग से रायपुर जाने वाला हिस्सा विभिन्न स्थानों से उखड़ गया था। उसमें पैच वर्क किया गया, लेकिन वह अब वाहनों के लगातार आने-जाने और बारिश की वजह से कूबड़ की तरह उभर गया है। इसी तरह मरोदा से उतई तक, पुलगांव चौक से अंडा तक, दुर्ग में अग्रसेन चौक की सड़कें भी उखड़ने लगीं हैं।
आईसीआर के तहत निकासी के लिए ड्रेन जरूरी
भारतीय मार्ग संगठन (इंडियन रोड कांग्रेस) के नियमानुसार सड़कें लोगों की सुविधा के लिए हो। सड़क के दोनों तरफ ड्रेनेज सिस्टम हो, ताकि सड़क पर पानी न रहे और नालियों से बह जाए। बिटुमिन की बराबर कोडिंग और उसके ऊपर सील कोड भी लगा हो ताकि सड़क जल्दी न उखड़े। सड़कों में व्हाइट और येलो पट्टी भी बनाना होता है। यह भी नहीं हो रहा है।
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