छत्तीसगढ़

बस्तर में नक्सलियों की टूटी सामानों की सप्लाई लाइन… नक्सलवादों की हो सकती है हालात ख़राब…

राय़पुरः दक्षिण बस्तर में माओवादियों की घेराबंदी के लिए पुलिस ने चुनिंदा इलाके में स्ट्रैटेजिक कैंप खोले हैं। जिसमें पुलिस को कामयाबी मिलती दिख रही है। कोरोना काल के दौरान माओवादी संगठन में मुखबिरी का शक और पुलिस चौकसी का ऐसा माहौल बना कि अब वो अनाज, दवा, वैक्सीन जैसी चीजें अपने लोकल सप्लाई चैन से नहीं मंगवा पा रहे हैं। डीजीपी समेत तमाम वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी दक्षिण बस्तर में लगातार दौरे और बैठकें कर अपनी रणनीति का रिव्यू करते रहते हैं। अहम बात ये कि पुलिस नक्सिलयों की लोकल सप्लाई चैन टूटने को अच्छा संकेत मानती है। सत्ता पक्ष का मानना है कि अंदरूनी इलाके में जारी विकास रंग ला रहा है तो विपक्ष सरकार पर ठोस रणनीति ना होने का आरोप लगा रहा है। नक्सली संगठन में अविश्वास, टूट और तंगी का दौर है।

दक्षिण बस्तर में पिछले कुछ सालों के पुलिस फोर्स के लगातार बढ़ते दखल और एक के बाद एक खुलते कैंपों के जरिए. माओवादियों के स्थानीय संगठन के आत्मविश्वास पर चोट हुई है। साल 2019 से 2020 के बीच नक्सलियों ने मुखबिरी के शक में अपने ही संगठन के करीब 31 सक्रिय माओवादियों की निर्मम हत्या कर दी। इसके अलावा बस्तर के अंदरूनी इलाकों में बाजार में बढते पुलिस नेटवर्क के चलते नक्सलियों की सप्लाई चैन पर भी पुलिस की कड़ी नजर हो गई।

आत्मसमर्पित माओवादियों ने बताया कि हथियारों, विस्फोटकों, दवाओँ, रसद और आम जरूररत का सामान हर चीज की आपूर्ति के लिए माओवादियों को अब तेलंगाना और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। जाहिर है इससे नक्सल संगठन तकलीफ में हैं, कमजोर पड़े हैं। बीते दिनों दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव ने दावा किया कि नक्सलियों को अपने खाने में बेहोशी की दवा औरं जहर जैसी चीजें मिली हैं। जिसके चलते कई नक्सली बीमार पड़ गए, जो मजबूरी में सामने आए वो पकड़े गए या फिर मारे गए। इसीलिए वो अब अपनी जरूरत के लिए स्थानीय तंत्र का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। इसे पुलिस अपनी कामयाबी मानती है।

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