रायपुर: राज्य सरकार की मुख पत्र कहे जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण विभाग जनसम्पर्क के सभी अधिकारी कर्मचारियों ने आज छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के आव्हान पर कलमबन्दी कर दी है। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि जनसम्पर्क विभाग ने इस तरह कदम उठाया है।
इससे समस्त जिलों एवं अन्य विशेष प्रकोष्ठों से महत्वपूर्ण समाचार आना बंद हो गया है। इसके साथ ही आज सुबह से सोशल मिडिया समेत अन्य जनसंपर्क ग्रुपों से समाचार आना बंद हो गया है। जिससे राज्य सरकार की छवि को भारी नुकसान हो रहीं है। लोगों को जरूरी जानकारी समय पर मिल नही पा रही है। जिससे आम जनता को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जबकि यह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास एवं उनके दो सलाहकारों में वरिष्ठ पत्रकार शामिल है जो मीडिया के कामों बखूबी वाकिफ है।
कल आयुक्त ने ली बैठक- जैसे ही हड़ताल की सूचना मिली तो आनन फानन में नये जनसम्पर्क कमिश्नर दीपांशु काबरा ने पुराना जनसंपर्क कार्यालय में छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क अधिकारी संघ के प्रतिनिधियों एवं कार्यालयीन कर्मचारियों से चर्चा कर रास्ते निकालने पर जोर दिया। इस दौरान संघ द्वारा 12 प्रमुख बिंदुओं पर मांग रखी गयी है।
जिस पर आयुक्त ने सकारात्मक आश्वासन देतें हुए मुख्यमंत्री जी को विषय वस्तु अवगत कराने एवं अन्य विभागीय समस्याओं को समय सीमा के भीतर दूर करने की बात कही। पर एक महत्वपूर्ण बिंदु पर चर्चा रुक गयी। नाम ना बताने के शर्त पर अधिकारी ने बताया की वह महत्वपूर्ण बिंदु ही विवाद की मुख्य जड़ है। जिसमें राज्य प्रशासनिक सेवा के बहुत ही जूनियर अधिकारी को विभागाध्यक्ष बना दिया गया है। जबकि यह पोस्ट केवल भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग के लिए है।
क्या है मामला ?
मौजूदा मामला नए डीपीआर की पदस्थापना से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार ने हाल में राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी सौमिल रंजन चौबे को नए संचालक के रूप में डीपीआर की जिम्मेदारी दी है जिसका जनसंपर्क अधिकारी संघ विरोध कर रहा है। जनसंपर्क अधिकारी संघ का कहना है कि डीपीआर का पद अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के वरिष्ठ अधिकारी का पद है जिसपर राज्य प्रशासनिक सेवा के ऐसे अधिकारी की पदस्थापना की गई है जो जनसंपर्क के कई अधिकारियों से भी जुनियर हैं और इसी लिए जनसंपर्क अधिकारी संघ को उनकी पदस्थापना स्वीकार्य नही है।
विरोध में उतरने की पृष्ठभूमि लेकिन मामला केवल इतना ही नही है
दरअसल जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों की मौजूदा नाराजगी आज की नही है। इसकी पृष्ठभूमि मौजूदा सरकार ने 2018 में उसी समय बना दी थी जब मौजूदा सरकार ने जनसंपर्क और संवाद के कार्यों पर जांच बिठा दी थी जिसमें जनसंपर्क और संवाद के अधिकारी आजतक फंसे हुए है और उनका कैरियर प्रभावित हो रहा है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिन कार्यों को लेकर मौजूदा सरकार ने 2018 में जनसंपर्क और संवाद के अधिकारियों के खिलाफ एफआईआऱ कराई थी वे बहुत की सामान्य किस्म के कार्य थे जो आज भी उसी तरह से होते है या यूं कहे कि उसके बिना जनसंपर्क का काम संभव ही नही है।
जनसंपर्क का काम अन्य विभागों से अलग है
दरअसल जनसंपर्क विभाग का काम अन्य विभागों से बिल्कुल अलग है। यहां सैकड़ो काम ऐसे होते है जो पहले करा लिए जाते है और उस काम के लिए बाद में प्रशासनिक स्वीकृति लेकर कार्यादेश जारी किए जाते है। लेकिन इसी आधार पर 2018 में न केवल जांच बिठाई गई और अधिकारियों के विरुद्ध एफआईआर कराए गए बल्कि 5 और 6 अक्टूबर 2018 को जारी कार्योदेशों का भूगतान सरकार ने आजतक रोके रखा है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि- “ आप बताईये कि 5 और 6 अक्टूबर के डेट में केवल संवाद ने ही कार्यादेश जारी किया था? राज्य सरकार के अन्य विभाग ने नही? और राज्य सरकार द्वारा यदि सभी विभागों द्वारा 5 और 6 अक्टूबर 2018 को जारी कार्यादेश का भूगतान कर दिया गया तो संवाद का भूगतान क्यों रोका गया? आप मीडिया संस्थानों का पैसा रोक लेंगे। उन्हें नाराज कर देंगे और हमसे कहेंगे कि आप सरकार की छबि चमकाओं तो आखिर ऐसा कैसे होगा? ”
हमारी पीड़ा कोई नही सुनता
जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कहने को तो वे राज्य के मुख्यमंत्री के विभाग में काम करते है और मुख्यमंत्री के करीब रहते है लेकिन उनकी सुननेवाला कोई नही है। अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने पांच अक्टूबर को ही राज्य के मुख्य सचिव को ज्ञापन सौंपकर अपने विरोध और पीड़ा से अवगत करा दिया था लेकिन आज दिनांक तक उस विषय पर कोई ध्यान नही दिया गया जिसके बाद संघ को आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ा।
संघ का कहना है कि जनसंपर्क विभाग में पीएससी के द्वारा चयनित करीब 20 वरिष्ठ अधिकारी है जो वरिष्ठता क्रम में मौजूदा डीपीआर से उपर है। छत्तीसगढ़ जनसंपर्क अधिकारी संघ का कहना है कि उन लोगों ने दिनांक 25.08.21 को तत्कालिन आयुक्त सह संचालक, जनसंपर्क को लिखे पत्र में जनसंपर्क तथा संवाद में की जा रही नियम-विरुद्ध पदस्थापनाओं के संबंध में ध्यान आकर्षित करते हुए, इसका विरोध किया था।
पत्र की प्रतियां मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, सचिव जनसंपर्क विभाग और मुख्य कार्यपालन अधिकारी छत्तीसगढ़ संवाद को भी प्रेषित की गई थीं। जिसके बाद पत्र को मुख्यमंत्री सचिवालय ने संज्ञान में लेकर सचिव, जनसंपर्क विभाग, छत्तीसगढ़ शासन को आवश्यक कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया था। किंतु इसी दौरान पुनः 06.10.2021 को नियम विरुद्ध डीपीआर की नियुक्ति कर दी गई जिससे वे आंदोलन करने पर मजबूर हो गए।
क्या है मांग?
जनसंपर्क अधिकारी संघ ने मांग की है कि संचालक जनसंपर्क के पद पर राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की नियुक्ति के स्थान पर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों में से किसी एक को पदस्थ किया जाए और छत्तीसगढ़ संवाद में जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों की प्रतिनियुक्तियों के पदों पर राज्य प्रशासनिक सेवा एवं अन्य संवर्ग के अधिकारियों के स्थान पर पूर्व में लिए गए मंत्रिपरिषद के फैसले के अनुरूप जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों की ही पदस्थापना की जाए।
खोने को कुछ नही, पाने को बहुत कुछ इस आंदोलन से जनसम्पर्क विभाग के अधिकारियों के पास खोने के लिए कुछ नही है। पर पाने के लिए बहुत कुछ हैं। वास्तव में यह लड़ाई एक आत्मसम्मान की लड़ाई हो गयी है। संसाधनों के आभाव में जिस तरह जनसम्पर्क विभाग काम रह है वह काबिले तारीफ है। कोरोना काल मे भी बिना थके हारे जिस तरह सूचनाओं को आम जनता तक पंहुचाया वह किसी से छुपा नही है। एक जनसम्पर्क अधिकारी ने नाम ना बताने के शर्त पर बताया कि सभी जिलों में संसाधनों का बेहद आभाव है। पर उनके आवश्यक संसाधनों के तरफ कोई ध्यान नही देता हैं।
उन्होंने आगें बताया कि कलेक्टर एवं मंत्री दौरे में नयी गाड़ियों में होते है जिनकी स्पीड बहुत तेज होती। विभाग के पास आज बहुत ही पुरानी एवं कुछ जिलों में गाड़ी भी नही है। ऐसे में कवरेज करना मुश्किल हो जाता है। कई बार तो कार्यक्रम समाप्त होने के बाद ही जनसंपर्क के अधिकारी कार्यक्रम में पहुँच पाते है। ऐसे में करें भी तो क्या करें इनकी गाड़ी की स्पीड जो कम है। उन्होंने बताया कि संसाधनों का इतना अभाव है कि कुछ जिलों में 1-2 कर्मचारी ही कार्यरत है। जबकि मौजूदा दौर में 24 ×7 इनके पास काम का दबाव है।
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