छत्तीसगढ़ में प्रभावी नहीं रहा ‘बंद’… प्रदेश के कई शहरों में आंशिक असर रहा… किसान संगठनों ने सफल तो BJP ने बताया असफल…

केंद्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समर्थन में हुआ भारत बंद छत्तीसगढ़ में प्रभावी नहीं रहा। वामपंथी पार्टियों से जुड़े किसान और मजदूर संगठन व जन संगठन सड़क पर उतरे। इसकी वजह से कई शहरों में बंद का आंशिक असर दिखा। किसान संगठनों ने इसे सफल तो भाजपा ने असफल बताया है।
रायपुर में भारत बंद का कोई असर देखने में नहीं मिला। कुछ चौराहाें पर सुबह जनसंगठनों ने प्रदर्शन किया। राजनांदगांव और कोरबा में किसानों-मजदूरों ने रैलियां निकालीं। कारोबार बंद कर समर्थन देने को कहा गया। दुर्ग, गरियाबंद, धमतरी, कांकेर, बस्तर, बीजापुर, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, रायगढ़, सरगुजा, सूरजपुर, कोरिया और मरवाही में प्रदर्शन और सभाएं हुईं।
बांकीमोंगरा-बिलासपुर मार्ग, अंबिकापुर-रायगढ़ मार्ग, सूरजपुर-बनारस मार्ग और बलरामपुर-रांची मार्ग को थोड़ी देर के लिए रोक दिया गया था। चक्काजाम में सीटू सहित अन्य मजदूर संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया।
छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते का दावा है, प्रदेश में बंद का व्यापक प्रभाव रहा। बस्तर से लेकर सरगुजा तक मजदूर, किसान और आम लोग सड़कों पर उतरे। वहीं भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश प्रभारी संदीप शर्मा ने कहा, आज संयुक्त किसान मोर्चा के भारत बंद के आह्वान पर कांग्रेस के समर्थन के बावजूद छत्तीसगढ़ में बंद असफल रहा। यह साफ इस ओर इशारा करता है कि छत्तीसगढ़ के किसान कांग्रेस और उसके छिपे हुए मुद्दों को पहचान गए हैं। किसान अब उसे अपना समर्थन नहीं दे रहे हैं। एक कदम और आगे बढ़ाते हुए पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने किसान आंदोलन को नक्सलियों से समर्थित आंदोलन तक कह दिया।
सभाओं में स्थानीय मुद्दे भी उठे
आंदोलन के दौरान कई शहरों में नुक्कड़ सभाएं हुईं। इसमें किसान विरोधी कानूनों की वापसी के साथ ही फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य की गांरटी देने वाला कानून बनाने की मांग की गई। वक्ताओं ने कहा, देशव्यापी कृषि संकट से उबरने और किसान आत्महत्याओं को रोकने का एकमात्र रास्ता यही है कि उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले। इससे खरीदने की ताकत भी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था भी मंदी से उबरेगी। किसान नेताओं ने मनरेगा, वनाधिकार कानून, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों की प्रताड़ना, संविधान की 5वीं अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुद्दों को भी उठाया।
कांग्रेस ने समर्थन दिया था, सड़क पर नहीं उतरे
कांग्रेस ने देश भर में किसानों के भारत बंद को अपना समर्थन दिया था। प्रदेश कांग्रेस ने भी समर्थन की घोषणा की। लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता किसानों के समर्थन में सड़क पर नहीं उतरे। उधर, किसान महापंचायत की तैयारियों में जुटा छत्तीसगढ़ किसान मजदूर महासंघ भी बंद पर फोकस नहीं कर पाया।
मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया में ही दिया समर्थन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया के जरिए ही आंदोलन को समर्थन दिया। उन्होंने लिखा, न जाने चली गयी कितनों की जान, काले कानूनों की आफ़त में/ कभी तो होगा हिसाब इसका, काल की अदालत में।। मैं शांतिपूर्ण भारत बंद का समर्थन करता हूं। किसान भूपेश बघेल अपने किसान भाइयों के साथ है।