एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है। हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष में दो एकादशी पड़ती हैं और इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है इसलिए इस दिन व्रत, जप-तप, दान-पुण्य करने से प्राणी श्री हरि का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों में एकादशी व्रत को करने का विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से व्रत का पूरा फल मिलता है। जो लोग किसी कारण से एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं उन्हें श्री हरि एवं देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए एकादशी के दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विकता का पालन करना चाहिए।
क्यों नहीं खाते हैं चावल
पौराणिक मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। कथा के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पंन हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया,उस दिन एकादशी तिथि थी। अतःइनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है ,ताकि सात्विक रूप से विष्णु प्रिया एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।
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