बेसहारों के गुलशन का ज़हरा शेख नसीमा

रायपुर। आज जहां लोगों के पास अपने लिए समय नहीं होता। वहीं अंबिकापुर की रहने वाली शेख नसीमा एक ऐसा नाम है, जो बेसहारा लड़कियों का जीवन संवार रही हैं। नसीमा अपने घर में गुलशन-ए-जहरा मदरसा चलाती हैं जहां गरीब और बेसहारा बच्चियों को सहारा मिलता है। उनके रहने से लेकर पढऩे और कपड़े-लत्ते का सारा खर्च नसीमा खुद उठाती है। उन्होंने मदरसा में पढऩे वाली एक लडक़ी का विवाह भी करवाया है। इसका खर्च नसीमा ने खुद ही उठाया था। नसीमा के घर (मदरसा) में अभी 25 लड़कियां हैं। मदरसे में दीनी तालीम के अलावा दुनियाबी तालीम भी दी जाती है। यहां पढऩे वाली लड़कियां स्कूल भी जाती है और कुछ कॉलेज में भी पढ़ रही है, ताकि वे अपना भविष्य संवार सके।
खुद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली नसीमा चाहती है कि जो कुछ उन्होंने झेला वह किसी और को न झेलना पड़े। उनके पति बिजली विभाग में चालक है। नसीमा का एक बेटा कारोबार करता और दूसरा नौकरी। वे भी बच्चियों के पालन-पोषण में अपनी भागीदारी निभाते हैं। नसीमा का कहना है कि ससुराल में जहां बंदिशे होती है, लेकिन इस काम में उनके ससुर (शेख शरीफुद्दीन) ने काफी मदद की। उन्हीं की हौसला अफजाई का नतीजा है कि वे यह काम कर रही है। नसीमा बताती है कि उनके शौहर शेख हसरत इल्लार ने भी उन्हें रोका टोका नहीं। दस साल पहले जब उन्होंने मदरसा गुलशन-ए-जहरा खोला था उस वक्त तीन बच्चियां थी, क्योंकि उस वक्त वे इतने का ही खर्च उठा सकती थी। जैसे-जैसे उनकी परिस्थिति बदली मदरसे में और बच्चियों को भी दाखिला दिया। अब यह संख्या 25 तक पहुँच चुकी है।
नसीमा कहती है बचपन से गरीबी ही देखी। शादी के बाद भी हाल वही था, पति की प्राइवेट नौकरी थी। स्थिति अच्छी करने के लिए उन्होंने सिलाई-कढ़ाई शुरु की। कुछ दिन बाद अल्लाह की मेहर हुई और पति की सरकारी नौकरी लग गई चालक की बिजली विभाग में उसके बाद धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होता चला गया। अब अल्लाह का रहमो करम है कि हम खुद के साथ बच्चियों का भी जीवन संवार रहे हैं।
नसीमा कहती है कि जितनी बच्चियां उनके यहां है अगर उनका जीवन संवार जाए, बस उनकी यही तमन्ना है। उनका कहना है कि अगर अल्लाह ने नवाजा तो आखिरी सांस तक बेसहारा बच्चियों का लालन-पालन करती रहूँगी। नसीमा कहती है कि अल्लाह ने मुझे ऐसे काम के लिए चुना है यह मेरी खुशनसीबी है।