छत्तीसगढ़ (रथयात्रा विशेष) : भगवान जगन्नाथ शबरीनारायण से गए थे पुरी... - आशीष सिंह » द खबरीलाल                  
खबरीलाल EXCLUSIVE छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ (रथयात्रा विशेष) : भगवान जगन्नाथ शबरीनारायण से गए थे पुरी… – आशीष सिंह

प्राय: सभी जानते हैं और मानते हैं कि जगत के नाथ यानी भगवान जगन्नाथ हमारे छत्तीसगढ़ से पुरी गए थे। मतलब यह है कि उनका मूल स्थान छत्तीसगढ़ है। शबरीनारायण ही वह स्थान है जहां जगन्नाथ बिराजते थे। मान्यता है कि प्राचीन काल में यह स्थान शबर लोगों का निवास स्थान था, यह भी माना जाता है कि शबर महिला यानी शबरी ने इसी स्थान पर प्रभु राम को बेर खिलाए थे।

यहां ऐसे वृक्ष भी पाए जाते हैं-जिनके पत्ते दोने के आकार के होत हैं। इन्हीं पत्तों पर शबरी ने बेर रखा और अपने राम को, चख-चख कर मीठे बेर खिलाया था। डॉ. बलदेवप्रसाद मिश्र ने शबरों को भारत का मूल निवासी माना है। वे शबरों को मंत्रों का ज्ञाता कहते हैं। मंत्रों में शाबर मंत्रों को अमोध और स्वयं सिद्ध स्वीकार किया जाता है। मोरध्वज के पुत्र ताम्रध्वज के काल से शबरीनारायण में जात्रा की परंपरा चली आ रही है।



बिलासपुर गजेटियर से पता चलता है कि शबरी नारायण क्षेत्र एक घना जंगल था। वहां शबर जगन्नाथ की आराधना करते थे। एक ब्राह्मण ने जगन्नाथ की वह मूर्ति उनसे प्राप्त कर पुरी में प्रतिष्ठित करवाई। बदले में शबरों को वरदान प्राप्त हुआ कि उनके साथ नारायण हमेशा जुड़ा रहेगा। कविराज गोपीनाथ ने माना है कि शबर तंत्र-मंत्रों के रहस्यों के ज्ञाता थे। इस मंत्र यान से वज्रयान की शाखा निकली है। वज्रयान तांत्रिक बौद्धों की प्रमुख शाखा है।

एक स्वीकृत मान्यता यह भी है कि भगवान जगन्नाथ को किसी ब्राह्मण ने नहीं, बल्कि इंद्रभूति ने पुरी में प्रतिष्ठित किया था। इंद्रभूति वज्रयान शाखा के संस्थापक थे। इंद्रभूति का काल 8वीं-नौंवीं शताब्दी निर्धारित है। बौद्ध साहित्य में उन्हें वज्रयान संप्रदाय का प्रवर्तक बताया गया है। वे अनंगवज्र के शिष्य थे।



कविराज गोपीनाथ ने तो इंद्रभूति को उड्डयन सिद्ध अवभूत कहा है। सहजयान की संस्थापिका लक्ष्मीकंरा इंद्रभूति की बहन थीं। इंद्रभूति के प्रत्र पद्मसंभव ने तिब्बत में लामा संप्रदाय की स्थापना की थी।

इंद्रभूति ने अनेक ग्रंथ लिखे। ज्ञान सिद्ध उनका सबसे अधिक प्रसिद्ध ग्रंथ है। ज्ञान सिद्धि में उन्होंने अनेक बार भगवान जगन्नाथ की वंदना की है। इंद्रभूति जगन्नाथ स्वामी को बुद्ध के रूप में पूजते थे और तंत्र साधना करते थे। ओडि़शा के इतिहासकार जे. पी. सिंहदेव का कहना है कि इंद्रभूति ने जगन्नाथ को शबरीनारायण से सोनपुर के पास समलाई पहाड़ी की गुफा में लाए थे और वहीं तंत्र साधना करते थे। आसाम के कलिका पुराण में भी कहा गया है कि तंत्र का उदय उड़ीसा में हुआ है और भगवान जगन्नाथ उनके इष्ट देव हैं।



इंद्रभूति के बाद उसके पुत्र पद्मसंभव ने तंत्र पीठ का पूरी योग्यता से संचालन किया, वह भी पिता की तरह सिद्ध पुरुष था। बाद में तिब्बत नरेश रव्री स्रोंगल्दे के आमंत्रण पर पद्मसंभव तिबत चले गए। लक्ष्मीकांरा का विवाह जालेंद्रनाथ से हो गया। अब भगवान जगन्नाथ की उचित देखभाल करने वाला कोई न रहा, तब तंत्र संप्रदाय के लोग भगवान जगन्नाथ को पुरी ले आए।

ग्यारहवीं शताब्दी में अनंत वर्मा चोडग़ंग ने दक्षिण से आकर उड़ीसा पर विजय प्राप्त की। भगवान जगन्नाथ स्वामी का मंदिर उसी ने बनवाया। अनंत वर्मा का शासन काल 1076 से 1108 ईस्वी के बीच स्थापित किया जाता है। शताब्दियां बीत गई पर जगन्नाथ मंदिर आज भी पूरी भव्यता, कलात्मकता और सौंदर्य के साथ विद्यमान है।

चंूकि छत्तीसगढ़ की जगन्नाथ स्वामी का मूल स्थान है इसलिए इस क्षेत्र में भी रथ यात्रा का उत्सव अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। वैसे यह जानकारी तो सभी को है कि शबरीनारायण ही भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है। लेकिन मौका भी है और दस्तूर भी है, इसलिए यादें ताजा करने की एक कोशिश की है।