बीजापुर। नक्सलवाद की वजह से छत्तीसगढ़ से विस्थापित लगभग पांच हजार आदिवासियों की पहचान और पुनर्वास का केंद्र सरकार का प्रयास सर्वेक्षण के चरण में अटका हुआ है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और केंद्रीय जनजाति कार्य मंत्रालय ने जुलाई में छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से 13 दिसंबर 2005 से पहले वाम उग्रवाद की वजह से विस्थापित हुए आदिवासी परिवारों की संख्या का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण करने को कहा था, जिससे कि उनके पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू हो सके। राज्यों को सर्वेक्षण पूरा करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया था।
अदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि माओवादी हिंसा की वजह से भागे लगभग 30 हजार लोग ओडि़शा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के जंगलों में 248 बस्तियों में रह रहे हैं। कार्यकर्ताओं के मुताबिक, ये आदिवासी पेयजल और बिजली जैसी सुविधाओं के अभाव में दयनीय स्थिति में रह रहे हैं।
उन्हें कम मजदूरी मिलती है और इनमें से ‘यादातर के पास मतदाता परिचय पत्र नहीं हैं जिससे वे अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकते। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी अक्टूबर में छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए आदिवासियों की संख्या का पता लगाने को कहा था।
अधिकारियों ने कहा कि राज्यों ने अभी सर्वेक्षण का काम शुरू नहीं किया है। छत्तीसगढ़ सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि सर्वेक्षण में इसलिए देरी हो गई क्योंकि प्रशासन स्थानीय निकाय चुनावों में व्यस्त था। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में वे (विस्थापित आदिवासी) जिन क्षेत्रों में रहते थे, उनमें से ‘यादातर इलाके पहुंच से दूर हैं।
इस संबंध में बस्तर आईजी सुंदरराज पी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि सलवा जुडूम के दौरान विस्थापित हुए लोग बदले हुए महौल के बाद जहां फोर्स के बेस कैंप बन रहे हैं, वहां ग्रामीण सुरक्षित महसुस कर रहे हैं, जिससे पलायन कर गये लोग वापस लौंटने लगे हैं।
मरईगुड़ा और भेजाी के लगभग 10 से 15 परिवार के लोग वापस आकर अपने गांव में बस गये हैं। जैसे-जैसे महौल ठीक होते जा रहा है लोग वापस लौंट रहे हैं। उन्होंंने कहा कि शासन की मंशा भी यही है कि पलायन कर गये लोगों को वापस बुलाया जावे।
सर्वे के संबंध में उन्होंने बताया कि 2006 के बाद जिन लोगों ने भी पलायन किया है, उनकी पहचान आसानी से हो सकती है, क्योंकि गांव के ग्रामीण भी पलायन कर गये लोगों को जानते हैं। एक पीढ़ी के बाद का लंबा समय गुजर जाने के बाद इनकी पहचान में परेशानी होती।
जिन लोगों ने भी पलायन किया था उसमें से कई लोग शिविर में रह रहे थे, जहां से उनकी पहचान हो सकती है। शिविर से गांव वापस लौंटे लोग भी सर्वे में इसकी तस्दीक कर सकते हैं।
उन्होंंने यह भी कहा कि कुछ लोग वापस लौंटना चाहते हंै, जिनकी जमीन आज भी गांव में है। कुछ लोग जो कि दूसरे प्रदेश में काम के सिलसिले में गये हैं और रोजगार के लिए वहां रह रहे हैं, वे वापस आना नहीं चाहते। ऐसे भी लोगों की पहचान की जा रही है।
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