राजधानी दिल्ली के निर्भया गैंगरेप मामले में दोषी अक्षय सिंह की सज़ा-ए-मौत बरकरार है। आज सुप्रीम कोर्ट ने अक्षय के वकील एपी सिंह की ओर से तमाम दलील सुनने के बाद अक्षय की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
इससे पहले अक्षय के वकील ने कहा था कि अक्षय को मौत की सज़ा न दी जाए, यह मानवाधिकार के खिलाफ है। अक्षय की याचिका पर जस्टिस आर भानुमति, अशोक भूषण और ए एस बोपन्ना की बेंच ने सुनवाई की थी।
जस्टिस भानुमति ने फैसला पढ़ते हुए कहा, याचिकाकर्ता ने मुकदमे पर ही सवाल उठाए। इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती. जांच में कमी की बात पर ट्रायल कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर चुका है. रिव्यू में उन्हीं बातों की नए सिरे से सुनवाई नहीं हो सकती. दोषी यह बातें पहले भी कह चुका है.इसलिए हम ये पुनर्विचार याचिका खारिज करते हैं।
बड़ी बात यह है कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर चुका है. तब अक्षय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की थी. तीन दोषियों की दया याचिका खारिज करने वाली बेंच में भी जस्टिस आर भानुमति, अशोक भूषण और ए एस बोपन्ना ही शामिल थे।
बता दें कि वारदात को अंजाम देने वाले 6 लोगों में से राम सिंह की जेल में मौत हो गयी थी। एक नाबालिग दोषी बाल सुधार गृह में तीन साल बिता कर रिहा हो गया। ऐसे में निचली अदालत और हाई कोर्ट में चार लोगों पर मुकदमा चला। दोनों अदालतों ने चारों को फांसी की सज़ा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था. पांच मई 2017 को दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ये घटना इस दुनिया की लगती ही नहीं. ये ऐसी दुनिया की घटना लगती है जहां इंसानियत मर चुकी हो. दोषियों की नजऱ में पीडि़ता इंसान नहीं, सिर्फ एक मज़े का सामान थी।
16 दिसंबर, 2012 की रात दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में छह लोगों ने निर्भया (23) के साथ मिलकर दुष्कर्म किया था। सामूहिक दुष्कर्म इतना विभीत्स था कि इससे देशभर में आक्रोश पैदा हो गया था और सरकार ने दुष्कर्म संबंधी कानून और सख्त किए थे. छह दुष्कर्म दोषियों में से एक नाबालिग था।
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