सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में लडक़ी को कॉल गर्ल कहने के मामले में लडक़े और उसके माता-पिता को राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉल गर्ल कहने मात्र से आरोपियों को आत्महत्या करने के लिए उकसाने का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
दरअसल मामला 15 साल पहले का है। एक लडक़े के माता-पिता ने उसकी गर्लफ्रेंड को कॉल गर्ल कह दिया था, जिसके बाद उसकी गर्लफ्रेंड ने आत्महत्या कर ली थी। आत्महत्या के इस मामले में लडक़े और उसके माता-पिता पर आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉल गर्ल कहने मात्र से आरोपियों को आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराकर दंडित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी ने अपने फैसले में कहा कि आत्महत्या का कारण अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल था, यह नहीं माना जा सकता है।
जजों ने कहा कि गुस्से में कहे गए एक शब्द को, जिसके परिणाम के बारे में कुछ सोचा-समझा नहीं गया हो, उकसावा नहीं माना जा सकता है। वर्ष 2004 का मामला मामले में कोलकाता की लडक़ी आरोपी से अंग्रेजी भाषा का ट्यूइशन लेती थी।
इस दौरान दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए और विवाह करने का फैसला किया। लेकिन, लडक़ी जब लडक़े के घर गई तो लडक़े के गुस्साए माता-पिता ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और कॉल गर्ल तक कह दिया।
लडक़ी के पिता की ओर से दर्ज शिकायत के मुताबिक लडक़ी इसलिए दुखी थी क्योंकि उसके बॉयफ्रेंड ने अपने माता-पिता के व्यवहार और उनके शब्द पर ऐतराज नहीं जताया। इसी पीड़ा में लडक़ी ने जान दे दी। मामला वर्ष 2004 का है।
तीनों आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट में इसका विरोध किया। लडक़ी ने अपने दो सुइसाइड नोट में कहा कि उसे कॉल गर्ल कहकर गाली दी गई और जिससे वह प्यार करती थी, उसने ऐसी बात पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी।
पुलिस ने जांच के बाद लडक़े और उसके माता-पिता के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल किया। तीनों आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट में इसका विरोध किया, लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई।
फिर कलकत्ता हाईकोर्ट ने जुलाई महीने में उन्हें याचिका दायर करने की अनुमति दी। राज्य सरकार हाई कोर्ट के इस ऑर्डर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं था, ऐसा नहीं कहा जा सकता सुप्रीम कोर्ट ने सारे तथ्यों और सबूतों की पड़ताल करने के बाद हाई कोर्ट के आदेश को कायम रखा।
उसने कहा, हम यह भी मानते हैं कि यह केस आत्महत्या के उकसाने का नहीं है। आत्महत्या के लिए आरोपियों को जिम्मेदारी नहीं ठहराया जा सकता है और यह भी नहीं कहा जा सकता है कि आरोपियों के व्यवहार और उनके बोले हुए शब्दों के बाद पीडि़ता के पास आत्महत्या के सिवा कोई चारा नहीं बचा था।
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