बस्तर की परंपराएं सर्वथा अनोखी और अनूठी होती हैं। इसी के अंतर्गत संभाग के कोंडागांव जिले में बड़े राजपुर विकासखंड के गांव बांसकोट में दशहरा पर्व के अवसर पर रावण का पुतला दहन करने की परंपरा नहीं है और यह बाण चलाकर प्रतिकात्मक रूप से रावण का वध किया जाता है।
इस संबंध मेंं ग्रामवासियों में मान्यता है कि यदि पुतला दहन किया जायेगा तो इससे अनिष्ठ होने की संभावना होती है। इसलिए अपने क्षेत्र व ग्राम सहित पूरे संसार में अनिष्ठ की आशंका को टालते हुए रावण का वध होता है।
इस सिलसिले में उल्लेखनीय है कि ग्राम वासियों में यह परंपरा बीते 70 सालों से चल रही है और आज भी यह कायम है। जानकारी के अनुसार यहां पर वर्ष 1948 में 12 फूट ऊंची रावण की प्रतिमा का निर्माण हुआ था और इसी प्रकार यह दशहरा का पर्व यहां पर आयोजित होता है।
दशहरा के अवसर पर रावण का पुतला बनाकर उसे वध किया जाता है। यह भी सर्वाधिक विशेष तथ्य है कि यह परंपरा तत्कालीन महाराजा प्रवीणचंद भंजदेव के मार्गदर्शन में शुरू हुई थी जो आज तक चल रही है।
च्च्इस संबंध में स्थानीय ग्रामीणों ने यह भी बताया कि गांव में इसके बाद भी कई युवा सदस्यों ने पुतला दहन के लिए अनुमति मांगी थी लेकिन गांव की बुजूर्गों ने इस संबंध में उन्हें समझा कर मना भी कर दिया था। इसके बाद से कनिष्ठ की आशंका से यहां पर पुतला दहन करने की परंपरा नहीं है।
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