जगदलपुर। दंतेवाड़ा विधानसभा में हो रहे उपचुनाव चुनाव में कल प्रचार थम गया। प्रचार थमने के बाद प्रत्याशी और कार्यकर्ता अब घर-घर दस्तक दे रहे हैं। यहां चुनावी मैदान में खड़े सभी प्रत्याशियों ने जीत के दावे कर रहे हैं।
दावे प्रति दावे के साथ प्रत्याशी अब मतदान की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। दूसरी ओर नक्सली दहशत के चलते कई संवेदनशील क्षेत्रों में राजनीतिक दल नहीं पहुंच पाए हैं। संगीनों के साए में चुनाव संपन्न कराए जाने पुलिस और फोर्स के जवान डटे हुए हैं।
बस्तर संभाग की एकमात्र दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर भाजपा को कांटे की टक्कर में एकमात्र दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर सफलता मिली थी। जहां से तत्कालीन विधायक भीमा मंडावी के नक्सलियों द्वारा बारूदी विस्फोट से हत्या के बाद रिक्त हुई थी। इस लिए यहां उपचुनाव कराया जा रहा है।
नक्सली संवेदनशील क्षेत्र का आलम यह है कि दोनों ही राजनीतिक दल के प्रत्याशियों के पति नक्सली वारदात में शहीद हुए हैं। नक्सली दहशत से दंतेवाड़ा विधानसभा के ऐसे कई गांव हैं जहां राजनीतिक दल चुनाव प्रचार की हिम्मत भी नहीं जुटा पाए।
उन ग्रामों तक इक्का-दुक्का किसी ने पोस्टर और बैनर लगाकर चुनाव होने का एहसास दिला रहे हैं। चुनावी प्रचार के अंतिम दिन सभी राजनीतिक दल जीत के दावे और प्रति दावे के साथ मतदान की रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
चुनाव प्रचार के लिए सभी राजनीतिक दल दंतेवाड़ा विधानसभा के शहरी और कस्बाई क्षेत्रों तक सीमित रहे। जिसमें बड़ी संख्या में नेताओं का जमावड़ा देखने मिला जहां कोई भी अपनी जीत के लिए कोर कसर बाकी रखना नहीं चाहता था। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों और विधायकों का हुजूम दंतेवाड़ा में दिखा।
छत्तीसगढ़ शासन का पूरा मंत्रिमंडल दंतेवाड़ा में पहुंच चुका था। वहीं दूसरी ओर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री सहित पूर्व मंत्रियों एवं पूर्व विधायकों और वर्तमान विधायकों सहित सांसदों को चुनाव प्रचार करते हैं देखा गया।
नक्सली संवेदनशीलता का आलम यह था कि कोई भी रात्रि में दंतेवाड़ा ठहरने की हिमाकत नहीं कर रहा था जितने भी बड़े नेता किसी भी दल के हो वह जगदलपुर पहुंचकर रात्रि विश्राम कर रहे थे। नक्सली संवेदनशील बारसूर नकुलनार कुआकोंडा, और इंद्रावती नदी के तटीय क्षेत्र नारायणपुर से सटे ग्रामों में चुनाव प्रचार पूरी तरह से ठप था।
यह इलाका नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र का माना जाता है जहां नक्सलवादियों ने चुनाव बहिष्कार के पर्चे और बैनर लगाकर चेतावनी दे चुके थे। इन क्षेत्रों में मतदाता चुनाव को लेकर किसी भी तरह की चर्चा तक करना नहीं चाहते। यहां चुनाव की चर्चा करना अपनी मौत को दावत देने के समान है।
दंतेवाड़ा उपचुनाव की संवेदनशीलता का आकलन इसी से किया जा सकता है कि दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा कांग्रेस के महिला प्रत्याशी जिनके पतियों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया था और वे अब चुनावी मैदान में हैं।
इसे दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह कहना अनुचित नहीं होगा की नक्सलवाद का दंश झेल रहा दंतेवाड़ा सहित दक्षिण बस्तर का यह इलाका जहां लोकतंत्र की रक्षा के लिए पतियों के बलिदान के बाद पत्नियों में मोर्चा संभाला है। निसंदेह बस्तर संभाग से नक्सलवाद के खात्मे और लोकतंत्र की स्थापना के लिए कारगर साबित होगा।
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