नई दिल्ली। नया मोटर व्हीकल एक्ट (New Motor Vehicle Act) लागू होने के बाद भारी-भरकम जुर्माने के कई मामले सामने आए। हालांकि कुछ ऐसे अजीबो-गरीब मामले भी सामने आए हैं जो सोशल मीडिया (Social Media) पर काफी छाए हुए हैं।
अभी ताजा मामला दिल्ली के एक कैब (Cab) ड्राइवर का सामने आया है जिसका चालान कॉन्डम न रखने के चलते काट दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल में एक कैब ड्राइवर का इसलिए चालान काट दिया गया क्योंकि उसकी कैब में रखे फर्स्ट ऐड बॉक्स में कॉन्डम नहीं था।
दरअसल, फर्स्ट ऐड बॉक्स में कॉन्डम रखने को लेकर कोई नियम नहीं है, लेकिन कैब ड्राइवर का मानना है कि चालान से बचने के लिए कॉन्डम रखना अनिवार्य है।
क्या है पूरा मामला
खबर के अनुसार, दिल्ली के नेल्सन मंडेला मार्ग पर धर्मेंद को दो दिन पहले एक ट्रैफिक पुलिस वाले ने रोक लिया था। उसके पास सारे कागजात मौजूद थे लेकिन जब उसका फर्स्ट ऐड बॉक्स देखा गया तो उसमे कॉन्डम नहीं था।
इस बात पर ट्रैफिक पुलिस ने ड्राइवर का चालान काट दिया। बताया जाता है कि उसको जब चालान की रसीद मिली तो उसमें कॉन्डम का जिक्र न करते हुए ओवर स्पीड बताया गया।
दिल्ली की सर्वोदय ड्राइवर एसोसिएशन के अध्यक्ष कमलजीत गिल ने बताया कि सार्वजनिक वाहनों के लिए हर समय कम से कम तीन कॉन्डम लेकर चलना जरूरी है।
हालांकि ज्यादातर कैब ड्राइवरों को इस बात की खबर नहीं है कि आखिर उन्हें कॉन्डम रखना क्यों जरूरी है। कमलजीत गिल बताते हैं कि इसका इस्तेमाल चोट लगने पर किया जाता है। कॉन्डम किसी भी हादसे के समय खून के प्रवाह को रोकने में काफी मददगार साबित होता है।
दिल्ली की सर्वोदय ड्राइवर एसोसिएशन के अध्यक्ष कमलजीत गिल बताते हैं कि किसी तरह का हादसा होने पर, हड्डी में चोट लगने पर या फिर किसी भी तरह का कट लगने पर कॉन्डम का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बताते हैं कि अगर किसी को चोट लगने पर खून बहता है तो इसे कॉन्डम के जरिए रोका जा सकता है। इसी तरह फ्रैक्चर होने पर भी उस जगह पर अस्पताल पहुंचने तक कॉन्डम बांधा जा सकता है।
कानून में कॉन्डम रखने का कोई जिक्र नहीं
ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक, इस तरह का कोई नियम नहीं बना है। फिटनेस टेस्ट के दौरान भी इस तरह के मामले पर कोई जांच नहीं की जाती है।
पुलिस ने तो यहां तक कह दिया कि अगर कॉन्डम न रखने पर किसी कैब ड्राइवर का चालान होता है तो उसे इसकी शिकायत अथॉरिटी से करनी चाहिए। बता दें कि दिल्ली मोटर व्हीकल एक्ट- 1993 और सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट, 1989 में भी इसका कोई जिक्र नहीं है।
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