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एक सवाल…! क्या एक बंदर को मिल सकता है सरकारी कर्मचारी के बराबर वेतन और भत्ता…पर यहां हो रहा है ऐसा…वजह तो जरूर जानना चाहेंगे…

उत्तर प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में एक लंगूर को सिर्फ इसलिए तैनात किया गया है ताकि वह विश्वविद्यालय फैले हुए बंदरों के आतंक को खत्म कर सके। शिक्षण के साथ-साथ यहां रहने वाले कमरों पर भी बंदरों के आतंक से काफी लोग परेशान थे।

इससे निजात दिलाने के लिए लंगूर को तैनात किया गया है. भले ही उसको एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के बराबर वेतनमान देना पड़ रहा है लेकिन आज बंदर के आतंक से विश्वविद्यालय कैंपस पूरी तरह मुक्त हो चुका है।



चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में आए दिन बंदरों से परेशानी को निजात दिलाने के लिए इस लंगूर की नियुक्ति की गई है। इस लंगूर के मालिक को इस लंगूर के लिए चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का वेतन भत्ता में दिया जाता है।

इस मादा लंगूर का नाम चंदा है. लंगूर को 24 घंटे में कभी भी ड्यूटी पर बुलाया जा सकता है ताकि वह बंदरों के आतंक से निजात दिला सके। जब से विश्वविद्यालय में इस लंगूर की नियुक्ति हुई है, तब से यूनिवर्सिटी में बंदरों का आतंक लगभग खत्म हो गया है।
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मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, विश्वविद्यालय में बंदरों का आतंक इस तरह था कि स्टूडेंट्स की किताबें, लेख उठाकर ले जाते थे. लैब और क्लास में घुसकर आतंक मचाते थे।

बंदरों के आतंक से पूरा विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र काफी परेशान थे इससे निजात दिलाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक लंगूर की नियुक्ति की। इस लंगूर को विश्वविद्यालय प्रशासन एक चपरासी के बराबर वेतनमान देता है. जबसे इसको तैनात किया गया, तब से बंदरों का आतंक कम हो गया है।

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