स्पोर्ट्स डेस्क। टीम इंडिया के युवा खिलाड़ी पृथ्वी शॉ के डोप टेस्ट में फेल होने के बाद खेल मंत्रालय ने बीसीसीआई पर सख्त रवैया अपनाते हुए उसे भी नाडा के अधीन कर लिया है।
अब बोर्ड ऑफ क्रिकेट कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया यानी बीसीसीआई भी वाडा (नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) के दायरे में आएगा। भारतीय क्रिकेटर्स का डोप टेस्ट अब नाडा करेगी। इससे पहले तक भारतीय क्रिकेट बोर्ड दूसरे खेलों की तरह इस एजेंसी की जद में नहीं था।
डोपिंग का मकडज़ाल भारत में ही नहीं पूरे विश्व भर में फैला है और इसके चंगुल में दिग्गज खिलाड़ी तक फंस चुके हैं। रियो ओलंपिक से पहले अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील खारिज कर दी थी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले पाई थी।
यहां तक कि बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाए गए थे।बीजिंग और लंदन ओलंपिक के नमूनों की दोबारा जांच कराई गई और इसमें कुल 98 खिलाड़ी नाकाम रहे थे। किसी भी खिलाड़ी का करियर ज्यादा लंबा नहीं होता है। अपने सर्वश्रेष्ठ खेल के प्रदर्शन से ही कोई भी खिलाड़ी मशहूर होता है। इसी चक्कर में खिलाड़ी शॉर्टकट तरीके से मेडल पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं।
भारत में कब आया डोपिंग का पहला मामला?
साल 1968 के ओलिंपिक खेलों में पहली बार डोप टेस्ट हुए, लेकिन इंटरनेशनल ऐथलेटिक्स फेडरेशन पहली ऐसी संस्था थी जिसने 1928 में ही डोपिंग को लेकर नियम बनाए थे। साल 1966 में इंटरनेशनल ओलिंपिक काउंसिल ने डोपिंग को लेकर मेडिकल काउंसिल बनाई। जिसका काम डोप टेस्ट करना था।
भारत में पहला डोपिंग का मामला
भारत में पहली बार डोपिंग नाम के जिन्न का खुलासा साल 1968 में हुआ। दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में 1968 के मेक्सिको ओलंपिक के लिए ट्रायल चल रहा था। ट्रायल के दौरान कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढिय़ों पर चढ़ गए, उनके मुंह से झाग निकलने लगा और वह बेहोश हो गए। जांच में पता चला कि कृपाल सिंहब ने नशीला पदार्थ के सेवन किया था, ताकि मेक्सिको ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर पाएं। इसके बाद तो भारत में डोपिंग के कई मामले सामने आने शुरू हो गए।
इस तरह जाल में फंसते हैं खिलाड़ी
डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच अलग-अलग श्रेणी में बांटा गया है। स्टेरॉयड, पेप्टाइड हॉर्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग। स्टेरॉयड यह हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होता है, जैसे टेस्टेस्टेरॉन। पुरुष खिलाड़ी अपने शरीर में मासपेशियां को बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं, तो यह शरीर में मासपेशियां बढ़ा देता है।
पेप्टाइड हॉर्मोन स्टेरॉयड की ही तरह हॉर्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं। इंसुलिन नाम का हॉर्मोन डायबीटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हॉर्मोन है, लेकिन हेल्दी इंसान को अगर इंसुलिन दिया जाए तो इससे शरीर से फैट घटने लगती है और मसल्स बनती हैं।
ब्लड डोपिंग इसमें खिलाड़ी कम उम्र के लोगों का ब्लड खुद को चढ़ाते हैं। इसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है। कम उम्र के लोगों के ब्लड में रेड ब्लड सेल्स ज्यादा होते हैं जो खूब ऑक्सिजन खींच कर जबरदस्त ताकत देते हैं।
नार्कोटिक्स नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होती हैं। खेल के दौरान दर्द का अहसास होने पर अक्सर खिलाड़ी इन दवाइयों के इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं।
डाइयूरेटिक्स शरीर से पानी को बाहर निकाल देता है। इसे कुश्ती या बॉक्सिंग जैसे मुकाबलों में अपना वजन घटा कर कम वजन वाले वर्ग में एंट्री लेने के खिलाड़ी इस्तेमाल करते हैं।
ऐसे होता है डोप टेस्ट?
अंतरराष्ट्रीय खेलों में ड्रग्स के बढ़ते चलन को रोकने के लिए वाडा की स्थापना 10 नवंबर, 1999 को स्विट्जरलैंड के लुसेन शहर में की गई थी। इसके बाद हर देश में नाडा की स्थापना की जाने लगी। इसमें दोषी पाए जाने वाले खिलाडिय़ों को 2 साल सजा से लेकर आजीवन पाबंदी तक सजा का प्रावधान है।
ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के इस्तेमाल को पकडऩे के लिए डोप टेस्ट किया जाता है। किसी भी खिलाड़ी का किसी भी वक्त डोप टेस्ट लिया जा सकता है। यह नाडा या वाडा या फिर दोनों की ओर से किए जा सकते हैं। इसके लिए खिलाडिय़ों के मूत्र के सैंपल लिए जाते हैं। नमूना एक बार ही लिया जाता है।
पहले चरण को ए और दूसरे चरण को बी कहते हैं। ए पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यदि खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से बी-टेस्ट सैंपल के लिए अपील कर सकता है। यदि खिलाड़ी बी-टेस्ट सैंपल में भी पॉजीटिव आ जाए तो उस सम्बंधित खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
ये टेस्ट (नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) या फिर (वल्र्ड एंटी डोपिंग एजेंसी) की तरफ से कराए जाते हैं। इसमें खिलाडिय़ों के यूरिन को वाडा या नाडा की खास लैब में टेस्ट किया जाता है। नाडा की लैब दिल्ली में और वाडा की लैब्स दुनिया में कई जगहों पर हैं।
ये खिलाड़ी भी हो चुके हैं डोप टेस्ट का शिकार
टीम इंडिया के धाकड़ बल्लेबाज रहे यूसुफ पठान भी 2017 में डोपिंग में फंस चुके हैं। उन्हें भी प्रतिबंधित पदार्थ टरबूटेलाइन लेने के लिए पॉजिटिव पाया गया था। बीसीसीआई ने पठान पर पांच माह का निलंबन लगाया था। यह 15 अगस्त 2017 से लागू होकर 14 जनवरी, 2018 को समाप्त हुआ।
दिग्गज ऑस्ट्रेलिाई स्पिनर शेन वॉर्न को 2003 विश्व कप के दौरान डोप टेस्ट में दोषी पाया गया। दक्षिण अफ्रीका में टूर्नामेंट शुरू होने से एक दिन पहले उनके नतीजे की रिपोर्ट आई जिसमें वह पॉजिटिव पाए गए और उन्हें वापस भेज दिया गया। उन पर एक साल का प्रतिबंध लगा।
पाकिस्तानी तेज गेंदबाज शोएब अख्तर पर भी डोप टेस्ट की गाज गिर चुकी है। अख्तर जब अपने करियर के चरम पर थे तब उन्हें इसका सामना करना पड़ा था। साल 2006 में डोपिंग में फंसने के बाद शोएब पर दो साल का प्रतिबंध लगा था। दो साल तक उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से दूर रहना पड़ा था।
न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान और आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग के कोच स्टीफन फ्लेमिंग भी डोप टेस्ट का शिकार हो चुके हैं। साल 1993-94 के दौरान फ्लेमिंग डोपिंग में फंसने पर कुछ समय के लिए प्रतिबंधित हुए थे।
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