रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के रेडियोडायग्नोसिस तथा मेडिसीन विभाग के डॉक्टरों द्वारा हाल ही में एक विशेष प्रकार की चिकित्सा प्रक्रिया के जरिये मरीज को नई जिंदगी दी है। मरीज को लीवर एब्सेस नामक बीमारी थी। जिसका उपचार पिन होल तकनीक से करते हुए लीवर में स्थित फोड़े से मवाद निकाला गया।
इस प्रक्रिया को रिअल टाइम अल्ट्रासाउंड गाइडेड ट्रीटमेंट कहते हैं अर्थात् अल्ट्रासाउंड मशीन के जरिये वास्तविक स्थिति का पता लगाने के साथ-साथ त्वरित उपचार करना। मरीज अभी मेडिसीन रोग विभाग में चिकित्सकों की देख-रेख में भर्ती है।
लीवर का फोड़ा या एब्सेस एक ऐसी बीमारी है जिस दौरान लीवर में कोई गांठ या फोड़ा हो जाता है। इसे लीवर एब्सेस या जिगर का फोड़ा भी कहते हैै। इस दौरान लीवर में बहुत अधिक मात्रा में मवाद या पस एकत्रित हो जाता है।
इसके लक्षण आमतौर पर लोगों को समझ नहीं आते क्योकि वो इसे सामान्य पेट दर्द समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं है। रेडियोडायग्नोसिस विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एसबीएस. नेताम ने बताया है कि वर्तमान में नई तकनीक के आ जाने से रेडियोडायग्नोसिस के उपकरणों जैसे- एक्स रे, सोनोग्राफी तथा सीटी स्कैन जैसी मशीन का उपयोग न केवल जांच में बल्कि उपचार में भी किया जा रहा है।
इनकी सहायता से जोड़ो-मांसपेशियों , किडनी व पित्ताशय की पथरी, एबलेशन, ट्यूमर और सिस्ट इत्यादि बीमारी का उपचार तथा जांच के लिए उत्तकों के नमूने लेने की सुविधा भी उपलब्ध है। रेडियोडायग्नोसिस का क्षेत्र काफी व्यापक है। यह दिनों-दिन उन्नत होते जा रहा है।
पेट दर्द की समस्या के साथ पहुंचा मरीज:-बैकुंठपुर कोरिया निवासी 52 वर्षीय एक मरीज पेट दर्द और तेज बुखार के साथ 16 जुलाई को अम्बेडकर अस्पताल के मेडिसीन रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके पटेल के पास पहुंचा। मरीज की स्थिति को देखते हुए डॉ. पटेल ने तुरंत प्रारंभिक जांच व सोनोग्राफी की सलाह दी।
सोनोग्राफी करवाने के लिए मरीज रेडियोडायग्नोसिस के इंटरवेंशन रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विवेक पात्रे के पास पहुंचा जहां पर डॉ. पात्रे ने गंभीरता के आधार पर मरीज की तुरंत सोनोग्राफी की जिसमें मरीज के लीवर के अंदर बहुत बड़ा फोड़ा (एब्सेस) दिखाई दिया। मरीज की स्थिति बेहद गंभीर होने के कारण डॉ. पात्रे ने लीवर में स्थित फोड़े से मवाद को तुरंत निकालने का निर्णय लिया।
पिन होल तकनीक से किया:-सबसे पहले मरीज के परिजनों को मरीज की गंभीर स्थिति के बारे में समझाते हुए हाई रिस्क कंसेट लिया। उसके बाद अल्ट्रासाउंड मशीन के मार्गदर्शन में फोड़े पर नीडिल डालते हुए वायर की सहायता से रास्ता बनाकर उसमें नली डालकर मवाद को बाहर निकाला।
मवाद अत्यंत गाढ़ा था इसलिए उसको पतला करने के लिए डॉ. विवेक पात्रे ने नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उसमें दवा डालकर मवाद को पतला किया। यदि मवाद को पतला नहीं करते तो वह ट्यूब की सहायता से बाहर नहीं निकलता। फोड़े से करीब ढाई से तीन लीटर मवाद निकला।
इस प्रक्रिया के लिये मरीज को बेहोशी की जरूरत नहीं पड़ी। केवल उसी स्थान को सुन्न किया गया जहां से मवाद निकालना था। मरीज का इलाज पिन होल तकनीक से किया गया। पिन होल तकनीक अर्थात् बिना चीर-फाड़ के नीडिल की सहायता से लीवर के मवाद निकालने की एक प्रक्रिया।
मरीज के उपचार से संतुष्ट उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मीना द्विवेदी का कहना है कि मेरे पति यहां बेहोशी की हालत में आये थे। उपचार के बाद आज वे बिलकुल स्वस्थ्य हैं और डॉक्टरों ने उनका त्वरित इलाज किया इससे हम लोग खुश हैं।
शुरूआत में नजर नहीं आते लक्षण:-मेडिसीन रोग विशेषज्ञ डॉ. आरके पटेल कहते हैं कि प्रारंभिक दौर में लीवर से संबंधित बीमारियों का कोई लक्षण नजर नहीं आता इसलिए 30 से 40 साल की उम्र के बाद सभी को साल में एक बार लीवर फंक्शन टेस्ट और सोनोग्राफी जरूर करवाना चाहिए। पाचन संबंधी समस्याएं, जैसे पेट में दर्द, कब्ज या लूज मोशन और वोमिटिंग, हल्का बुखार, भोजन में अरुचि, थकान और बेचैनी, वजन का घटना लीवर से सम्बन्धित बीमारी के लक्षण हैं।
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