भाजपा नेतृत्व के थोक में सांसदों के टिकट काटने के फैसले ने न सिर्फ सत्ता विरोधी लहर को थामा, बल्कि पार्टी के ब्रांड मोदी को और मजबूत बना दिया। पार्टी ने जिन 91 सीटों पर नए चेहरे उतारे उनमें 79 सीटों पर जीत हासिल हुई। इनमें 8 सीटों से जुड़े सांसदों में से कुछ ने खुद चुनाव न लडऩे की इच्छा जताई तो कुछ ने ऐन चुनाव के समय पार्टी बदल ली।
इस बार थोक में टिकट काटने से पार्टी को उन तीन राज्यों में से दो राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान में जबर्दस्त सफलता हाथ लगी, जहां बीते साल के अंत में पार्टी ने सत्ता गंवा दी थी। इसके अलावा पार्टी गुजरात में 40 फीसदी सांसदों का टिकट काट कर फिर से क्लीन स्वीप करने में कामयाब हुई।
थोक में टिकट काटने की बदौलत ही पार्टी ने राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में क्लीन स्वीप किया। विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त हार का सामना करने के बावजूद छत्तीसगढ़ की 10 पुरानी सीटों में से 8 सीटें बचाने में कामयाब रही।
यूपी में भी पड़ा व्यापक असर
पार्टी ने इस चुनाव में यूपी के 19 सांसदों का टिकट काटा था। इसके अतिरिक्त पार्टी ने सावित्री बाई फूले और श्यामाचरण गुप्ता के पाला बदलने के बाद नए चेहरे का मौका दिया था। पार्टी हालांकि यूपी में सहयोगी के साथ 80 से 73 सीटें जीतने में कामयाब नहीं हुई। मगर पार्टी ने ऐसी 21 में से 15 सीटें दोबारा जीतने में सफलता हासिल की।
छत्तीसगढ़ में की थी सबसे बड़ी स्ट्राइक
बीते साल के अंत में राज्य में कांग्रेस के हाथों करारी शिकस्त के बाद पार्टी ने राज्य के सभी 10 सांसदों का टिकट काट दिया था। पार्टी की यह तरकीब काम आई और जिस सूबे में कांग्रेस को तीन चौथाई सीटें मिली थी, वहां उसे महज तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
पार्टी ने ऐसा ही प्रयोग दो वर्ष पूर्व दिल्ली निकाय चुनाव में किया था। पार्टी ने तब सभी वर्तमान पार्षदों के टिकट काट कर तीनों निगमों में बहुमत हासिल किया था।
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