हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक, लेखक और प्रोफेसर नामवर सिंह का मंगलवार (19 फरवरी) रात 11।51 पर देहांत हो गया। वह 93 साल के थे औरपिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। नामवर सिंह का अंतिम संस्कार बुधवार (20 फरवरी) दोपहर तीन बजे लोधी रोड के शमशान घाट में किया जाएगा। जनवरी में वे अचानक अपने कमरे में गिर गए थे। इसके बाद उन्हें AIIMS ले जाया गया था। यहीं उनका इलाज चल रहा था।
JNU में भारतीय भाषा केंद्र की स्थापना करने और हिंदी साहित्य को नए मुकाम पर ले जाने में उनका सराहनीय योगदान है। हिंदी में आलोचना विधा को उन्होंने नई पहचान दी। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी है।
Most acclaimed Hindi critic Professor #NamvarSingh passes away in New Delhi Tuesday night. He was 92. He was ill for sometime and being treated at All India Institute of Medical Sciences. pic.twitter.com/P6OUqyipVa
— All India Radio News (@airnewsalerts) 19 February 2019
‘आलोचना’ के धनी नामवर सिंह
हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी नामवर सिंह का जन्म बनारस के जीयनपुर गांव में हुआ था। जो अब चंदौली है। नामवर सिंह ने अपनी लेखनी में आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई ऊंचाई दी।
नामवर सिंह ने साहित्य में काशी विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की। इसके बाद इसी विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी। वे कई साल तक एक प्रोफेसर के तौर पर सेवाएं देते रहे। उनकी छायावाद, नामवर सिंह और समीक्षा, आलोचना और विचारधारा जैसी किताबें चर्चित हैं।
आलोचना में उनकी किताबें पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी नई कहानी, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद संवाद आदि मशहूर हैं। उनका साक्षात्कार ‘कहना न होगा’ भी साहित्य जगत में लोकप्रिय है।
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