रायपुर। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मेें मतदान के दौरान उंगली में स्याही नहीं लगाए जाने की मांग उठ रही है। ग्रामीणों को अंदेशा है कि उंगली में स्याही लगी देखकर नक्सली उनपर हमला कर सकते हैं। बस्तर के दो जिलों के प्रशासन ने इस संबंध में चुनाव आयोग से मार्गदर्शन मांगा है। दूसरी ओर नक्सल प्रभावित राज्य होने के कारण चुनाव आयोग के लिए भी यहां शांतिपूर्ण मतदान कराना किसी चुनौती से कम नहीं है।
नक्सल प्रभावित राज्य होने के कारण यहां दो चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण में 12 नवंबर को जबकि दूसरे चरण में 20 नवंबर को मतदान होगा। ज्ञात हो कि इस अमिट स्याही का इस्तेमाल पहली बार 1962 के तीसरे आम चुनाव में हुआ था ताकि फर्जी मतदान रोका जा सके। यह स्याही मैसूर में बनाई जाती है जो लगाने के बाद 60 सेकेंड में ही सूख जाती है।
मैसूर के महाराजा नालवाड़ी कृष्णराज वाडियर ने 1937 में एक कंपनी मैसूल लैक एंड पेंट्स लिमिटेड बनाई थी जो अब मैसूर पेंट्स एंड वॉरनिश लिमिटेड के नाम से जानी जाती है। यह स्याही सिंगापुर, थाइलैंड, नाइजीरिया, मलेशिया, पाकिस्तान, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों को भेजी जाती है।
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