सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ रोकने के लिए संसद को ही कानून बनाना चाहिए। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के सांसद व विधानसभाओं में पहुंचने के कारण लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो रही है। इसे रोकने के लिए संसद को जरूर दखल देना चाहिए।
हालांकि शीर्ष अदालत ने उम्मीदवारों राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि अदालत में लंबित आपराधिक मामलों का शपथ पत्र में मोटे अक्षरों में उल्लेख करें। स्थानीय मीडिया में इसका कम से कम 3 बार प्रचार किया जाए। राजनीतिक दल अपनी वेबसाइटों पर भी उम्मीदवारों के आपराधिक मामलों को प्रकाशित करें ताकि सब कुछ जानने समझने के बाद जनता अपने नेता का चयन कर सके।
सुझावों पर 2014 से कुंडली मारे बैठी है सरकार-
राजनीति में अपराधियों को रोकने के लिए कानून बनाने का मामला सरकार के पास पहले से ही विचाराधीन है। व्यापक चुनाव सुधार का यह मामला 2013 में विधि आयोग के हवाले किया गया था। जस्टिस एपी शाह की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने 2014 में ही अपने सुझाव सौंप दिए थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसा करने का सुझाव दे दिया है।
विधि आयोग ने अदालतों में सुस्ती के कारण दागियों को रोकने के लिए वर्तमान प्रावधानों को प्रभावी माना था। जिसमें सजा मिलने के बाद ही किसी प्रत्याशी को चुनाव के आयोग माना माना जाता है। अपनी रिपोर्ट में आयोग ने अदालत में आरोप तय हो जाने के बाद ही प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य मानने का सुझाव दिया है।
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