जगदलपुर। एक तरफ जंगली जानवरों का खतरा है तो वहीं दूसरी तरफ नक्सली भय, इसके बाद भी आदिवासी बच्चों में पढ़ाई के प्रति ललक बरकरार है। ये तमाम बाधाएं भी इन बच्चों के बुलंद हौसलों के सामने घुटने टेक दिए है ऐसा लगता है।
यह कहानी है बस्तर जिले के लोहण्डीगुड़ा विकासखण्ड के जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर ग्राम पिच्चीकोडेर का है। यहां उपसरपंच कुलमन ठाकुर, पटेल गुड्डी राम ने बताया कि यह आश्रम जंगल के मध्य है और हमेशा वन्य प्राणियों के हमले का खतरा बना रहता है, वहीं कई बार पास ही बह रही इन्द्रावती के मगरमच्छ भी आश्रम की तरफ आते रहते हैं। इसलिए शाम ढलते ही आश्रम के 65 बच्चे चार कमरों में दुबक जाते हैं और जरा सी आहट होते ही सहम जाते हैं। पिच्चीकोडेर बालक आश्रम के 14 हाल, 2 शिक्षक आवास और 3 शौचालयों को दिसंबर 2007 में बारसूर एरिया कमेटी के नक्सलियों ने ढहा दिया था। साल भर पहले ही यहां आश्रय लिए 65 बच्चों और शिक्षकों ने श्रमदान कर छह जर्जर कमरों को दुरुस्त कर रहने और पढऩे लायक तो बना लिया है, लेकिन शाम होते ही इस खंडहरनुमा आश्रम परिसर में बच्चों का शोरगुल पूरी तरह से थम जाता है। यह आश्रम पिच्चीकोडेर बस्ती से दूर और पहाड़ी ढलान वाले जंगल के नीचे है। छात्रावास के बच्चों ने बताया कि आए दिन भालू, जंगली सूकर, तेन्दुआ इधर नजर आते हैं।
आश्रम अधीक्षक रमेश बैज ने बताया कि यहां हमेशा जंगली जानवरों का डर बना रहता है। आश्रम से 100 मीटर दूर इद्रांवती नदी बहती है जहां मगरमच्छ निवास करते हैं। कभी-कभी मगरमच्छ पानी से बाहर निकलकर आश्रम के नजदीक भी पहुंच जाते हैं। शाम ढलते के बाद बच्चे आश्रम से नहीं निकल पाते। जंगली जानवरों का भी डर बना रहता है। अधिकारियों को यहां की समस्याओं से अवगत कराया गया है किंतु अब तक समाधान नहीं हो पाया है।
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