रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने प्रदेश में मानव हाथी संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को रोकने, घने वन व हाथी आवास क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को अनुमति नहीं देने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को पत्र लिखा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने पत्र में लिखा है कि जैसा कि आप अवगत हैं कि छत्तीसगढ़ के 17 जिलों में मानव हाथी संघर्ष की स्थिति बहुत ही गंभीर हो चुकी है। पिछले पांच वर्षो में हाथी के हमलों से 200 से अधिक लोग मारे जा चुके है। 7000 से अधिक घरों को भारी नुकसान हुआ है। इसी वर्ष जनवरी से जुलाई तक हाथियों के हमलें और अधिक वृद्धि हुई है। वन विभाग की तमाम योजनाएं और कार्यक्रम विफल होती नजर आ रही हैं। सोलर फेंसिंग से लेकर कुमकी हाथियों को लाने के प्रयोग भी प्रदेश के लोगों की जान नहीं बचा पा रहे हैं।
दलअसल आज भी राज्य सरकार यह मान कर चलती है कि हाथी ओडिशा और झारखण्ड से आ रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि 1998 के बाद से उत्तर छत्तीसगढ़ के जंगलो में हाथी पुन: स्थायी रूप से मौजूद हैं। इसलिए एक बड़े वन क्षेत्र को जहाँ हाथी मौजूद हैं या उनके नियमित आने-जाने के रास्ते को सुरक्षित रखते हुए उन्हें प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध कराना होगा, परन्तु इसके विपरीत उन्ही क्षेत्रों में हाथियों की उपस्थिति को नकारते हुए, खनन परियोजनाओं की स्वीकृति के लिए राज्य सरकार द्वारा अनुशंसाएं की जा रही हैं।
हसदेव अरण्य क्षेत्र के सरगुजा जिले में स्थित परसा कोल ब्लाक की पर्यावरणीय स्वीकृति हेतु केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन समिति (ईएसी) ने दिनांक 15-16 फरवरी, 2018 को अपनी मीटिंग में प्रस्ताव पर स्वीकृति के पूर्व खनन से हाथियों पर होने वाले प्रभाव के संबंध में राज्य वन्य प्राणी बोर्ड से राय मांगी थी। इसी प्रस्ताव पर पुन: विचार हेतु (ईएसी) समिति में 24 जुलाई को पुन: प्रस्ताव आया। दिनांक 24 जुलाई को ही रायपुर से प्रकाशित एक अख़बार के माध्यम से ज्ञात हुआ कि राज्य वन्य प्राणी बोर्ड की जगह वन्य प्राणी अभिरक्षक के द्वारा खनन के प्रस्ताव पर सहमति देते हुए दिनांक 18 मई 2018 को (ईएसी) समिति को प्रस्ताव भेज दिया गया है। इस प्रस्ताव से यह सवाल भी खड़ा होता है कि यह अनुशंसा राज्य वन्य प्राणी बोर्ड ने की है या वन विभाग के अधिकारी ने बिना बोर्ड की जानकारी के यह अनुशंसा की है?
इसी परियोजना के संबंध में आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूँ कि केन्द्रीय वन सलाहकार समिति एफएसी ने इस क्षेत्र का भ्रमण कर अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हाथियों एवं अन्य वन्यजीव कारीडोर की अब तक कोई मैपिंग नहीं हुई जबकि इस क्षेत्र में हाथियों की आवाजाही होती है। इसी तारतम्य में आपको बताना चाहूंगा कि जनवरी से जुलाई 2018 के बीच प्रस्तावित खनन क्षेत्र और उसकी परिधि में 5 घटनाएं हाथियों के हमलों से हुई है जिसमे 3 ग्रामीणों की मौत और कई घरों की गंभीर हानि हुई है। हाथियों की आवाजाही और लगातार हो रही जन-धन की हानि से यह स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में हाथियों की उपस्थिति है चाहे वह माईग्रेटरी कॉरिडोर के रूप में ही क्यों न हो। इस क्षेत्र में खनन परियोजनाओं की स्वीकृति मानव हाथी संघर्ष को और अधिक तेज करेगा। हसदेव अरण्य का सम्पूर्ण क्षेत्र न सिर्फ सघन वनों से परिपूर्ण है बल्कि समृद्ध जैव विविधता भी इसकी विशेषता है। हमारा अनुभव बताता है कि वन्य प्राणियों के आवास क्षेत्र में एक सहअस्तित्व संभव है। इस क्षेत्र का एक व्यापक और समग्र अध्ययन कर उसके संरक्षण के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए एवं इस सम्पूर्ण क्षेत्र को ही खनन मुक्त रखा जाना चाहिए।
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