जांजगीर-चांपा। मगरमच्छ पकडऩे का प्रशिक्षण लेने वाले ग्रामीणों को काम नहीं मिलने से वे बेरोजगार हैं। कोटमीसोनार के दस ग्रामीणों को वन विभाग द्वारा चेन्नई में मगरमच्छ पकडऩे के लिए वर्ष 2003 में ट्रेनिंग दी गई थी। प्रशिक्षण के बाद ये युवक तालाब व नदी नालों से बाहर निकले व पार्क से दूसरे तालाबों में गए मगरमच्छों को जान की बाजी लगा कर पकड़ते हैं और क्रोकोडायल पार्क में लाकर इनका संरक्षण किया जाता है। नियमित रोजगार नहीं होने से इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है।
गांव के गणेशराम शांडिल्य, सुंदरलाल सोनवानी, व्यासनारायण मल्होत्रा, संतकुमार बाजपेई, पवन कुर्रे, लक्ष्मी पटेल, विजय सोनवाने सहित दस ग्रामीणों को विभाग द्वारा वर्ष 2003 में चेन्नई में मगरमच्छ पकडऩे का प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद ये ग्रामीण दूसरे तालाबों व नदी नालों से भटके मगरमच्छों को पकड़कर पार्क में शिफ्ट करते हैं। मगरमच्छ पकडऩे के लिए इनकी दस लोगों की टीम है। इस कार्य में अन्य दस लोगों का सहयोग लिया जाता है। विभाग इन्हें एक मगरमच्छ पकडऩे के लिए तीन हजार रुपए पारिश्रमिक देता है। मगरमच्छ पकडऩे में लगने वाले सामग्री जाल, लकड़ी, सीढ़ी आदि की व्यवस्था इन्हीं के द्वारा किया जाता है। मगरमच्छ पकडऩे के अलावा इनके पास और कोई काम नहीं है। यह रोज का काम नहीं है। यदि किसी माह मगरमच्छ नहीं मिला तो इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो जाती है।
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