VIDEO : मनरेगा स्वीकृत स्टाप डेम के कार्यों में हो रहा मशीनों का उपयोग

चंद्रकांत पारगीर, बैकुंठपुर। कोरिया जिला प्रशासन हमर जंगल हमर अजीविका परियोजना के तहत जल संसाधन विगाग को मनरेगा के लिए 7 स्टापडेम स्वीकृत किए है, जिसमें दो बडे स्टापडेम जिनकी लागत 50-50 लाख से ज्यादा है वहीं 5 छोटे स्टापडेम जिनकी लागत 20-20 लाख रू है, मनरेगा से स्वीकृत ये स्टापडेम बड़ी-बड़ी मशीनों से कार्य तेजी से करवाया जा रहा है, वहीं यहां के मजदूरों काम की तलाश में शहर आ रहे है, जबकि कम्प्यूटर से इसके लिए जारी मस्टर रोल में चरचा और कटकोना के मजदूरों को काम करना बताया जा रहा है। मशीनों से कराए जा रहे निर्माण को लेकर जलसंसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री को कई बार कॉल किया गया परन्तु उन्होने कॉल रिसीव नहीं किया, वहीं कार्य करा रहे इ्रजीनियर श्री पांडे से जब इस संबंध में पूछा गया तो उनका कहना था कि कार्य मनरेगा से ही करवाया जा रहा है। रायपुर से जो टीम आई थी उन्होने कार्य को फटाफट करने के निर्देश दिए है इसलिए मशीन से कार्य करवाया जा रहा है, मजदूरी का पैसा भी कम मिला है।
जानकारी के अनुसार जिला प्रशासन ने ग्राम पंचायत मुरमा समेत मदनपुर, धरमपुर में 47 सोलर पंप के लिए 1 करोड 57 लाख रू डीएमएफ से और कई स्टापडेम, मिट्टी का कार्य, पुलिया निर्माण मनरेगा से किया जाना स्वीकृत किया। मनरेगा के तहत 7 स्टापडेम के निर्माण का जिम्मा जलसंसाधन विभाग को सौपा गया। प्रशासन यहां वन अधिकार से मिले पट्टे की भूमि को किसानों के लिए तैयार कर उन्हें हर तरह की सुविधा के साथ वो बेहतर ढंग से अपने को अर्थिक रूप से मजबूत हो सके। परन्तु दैनिक छत्तीसगढ ने जब पहुंचा तो ग्राम पचांयत मुरमा के देवखोल में बनाए जा रहे सभी 7 स्टॉपडेमों का निर्माण एजाक्स मशीन से तेजी से किया जा रहा है, बडे स्टाप डेम में सिर्फ 4 मजदूर कार्य कर रहे है और एक बड़ी एजाक्स मशीन, जो स्वयं रेत गिट्टी उठाकर मिक्स करती है और उसे बनाए जा रहे डेम स्थल में डाल रही है, जिससे महिनों में होने वाला कार्य हफ्तों में पूरा हो जा रहा है। निर्माण कार्य में 30 एमएम और हाथ की टूटी 40 एमएम से बडे गिट्टी प्रयुक्त की जा रही है। अमानक गिट्टी और रेत का धडल्ले से उपयोग हो रहा है। वहीं मनरेगा की वेबसाईट पर मस्टररोल क्रमांक 330601043 में 1111311576, 528, 894, 894, 903, 885 देखने पर यह बात सामने आई कि इन सभी कार्यो के मस्टररोल जनरेट हो रहे है, परन्तु कार्य मशीनों से करवाया जा रहा है जो कि नियम विरूद्ध है। यहां के ग्रामीणों का कहना है कि उन्हे कोई काम नहीं मिल रहा है जो वा किए है उसकी मजदूरी का भी भुगतान नहीं हो सका है। वहीं उनका कहना है कि देवखोल के बीचपारा के लोगो के खेत वहां है जिससे उन्हे खेती को लेकर फायदा होगा जबकि उपर की बस्ती के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। जिला प्रशासन एक ओर मुरमा में हर विभाग के अधिकारियों की तैनाती कर हमर जंगल हमर अजीविका परियोजना को सफल बनाने में जुटा है, जल संसाधन विभाग, पीएचई विभाग, कृषि विभाग, क्रेडा विभाग, उद्यान विभाग के अधिकारी कार्यालय में मिले या नहीं मिले प्रतिदिन जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर मुरमा के देवखोल में जरूर मिल जाते है। ऐसे में देवखोल के डूमरखोली के लोगों की समस्या की सुध लेने कोई नहीं जाता है। यहां 20 परिवारों की पंडो जनजाति की बस्ती है।
यहां के कृष्णा, परमेशवर, शिवप्रसाद, रनसाय पंडो ने बताया कि वे 2 किमी दूर से पीने का पानी लाते है, पहले वे सभी गेज नदी से पानी पीया करते थे, परन्तु अब वो सूख गयी है। ऐसे में उन्हें पीने के पानी के लिए बेहद मशक्क्त करनी पड रही है। हमर जंगल हमर अजिविका परियोजना के तहत जिला प्रशासन ने पीएचई विभाग से यहां 35 बोर करवाए, हलांकि इन दिनों बोर उत्खनन पर प्रतिबंध लगा हुआ है, ग्रामीण बताते है कि खोदे गए 35 बोर में से मात्र 6 बोर में ही पानी निकल पाया है, बचे 29 बोर पूरी तरह से सूख चुके है। वहीं बनाए जा रहे 6 स्टापडेम वोतघरा नाले पर निर्माण कराए जा रहे है, जिसमें पहले ही पानी काफी कम रहता है। ग्रामीण बताते है कि प्रशासन काम करवा रहा है, परन्तु पानी के रहने पर ही खेती संभव हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि मुरमा में पूर्व में केन्द्र सरकार द्वारा कृषि को लेकर मॉडल ग्राम पंचायत घोषित कर 1 करोड की राशि दी गई थी, परन्तु यहां के हालात नहीं बदते, बल्कि विभागों के अधिकारियों के साथ ठैकेदारों के हालात जरूर बदल चुके है।
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