छत्तीसगढ़

कोरोना का एक केस मिलते ही बदल गए थे हालात… अब कई कार्मिकों की जान जाने के बाद भी बेपरवाह BSP…

भिलाई। पिछले वर्ष भी ऐसे ही हालात थे उस समय जब 26 मार्च को कोरोना का एक केस मिला था खुर्सीपार में उसके बाद रेल मिल के कर्मियों ने रेल मिल एवं यूआरएम(यूनिवर्सल रेल मिल) को बंद कर दिया था। लेकिन प्रबंधन ने उसके बाद बड़े निर्णय लेते हुए जिस विभाग में प्रोडक्शन का दबाव कम था उन विभागों को बंद किया, जिसमें प्रमुख एसएमएस-1(स्टील मेल्टिंग शाप-1) और बीबीएम(ब्लूमिंग एंड बिलेट मिल) था।

उसी तरीके से वायर राड मिल को रिपेयर में लिया गया। डिमांड के हिसाब से मर्चेंट मिल को चलाया गया। इन सब परिस्थितियों के बाद जैसे-जैसे स्थितियां सामान्य होती गई। कर्मी उत्पादन को फिर से ऊंचाइयों की ओर ले गए और साल बीतते-बीतते सब कुछ सामान्य हो गया।

उत्पादन से लेकर लाभ तक सब कुछ कंपनी के पक्ष में गया है। इस तरह की बातें इंटरनेट मीडिया पर बीएसपी के कर्मचारी एक दूसरे से कहकर अपनी बात को प्रबंधन तक पहुंचा रहे हैं। लेकिन प्रबंधन टस से मस नही हो रहा है और कर्मचारियों के बीच आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है।

आज लगभग एक वर्ष के बाद फिर उसी तरह की स्थितियां निर्मित हुई है। पिछले वर्ष की तुलना में कई गुना ज्यादा अधिकारी एवं कर्मचारियों अपनी जान गवां चुके है। इन सबके बीच प्रबंधन को यह तय करना था जिन विभागों का आर्डर कम है, उन्हीं भागों में उत्पादन को धीमा किया जाता।

वहां रोस्टर प्रणाली लागू की जाती या अन्य विकल्पों को लेकर कर्मियों का मनोबल बढ़ाकर उत्पादन को एक व्यवस्थित तरीके से जारी रखा जा सकता था लेकिन प्रबंधन लगातार काम का दबाव बनाता रहा। बिना किसी व्यवस्था के कर्मी संक्रमित होते गए उनके साथ उनका परिवार भी संक्रमित होता गया और लोग अपनी जान गंवाते गए।

आज स्थिति इतनी बद से बदतर हो गई है कि संयंत्र में जो कर्मचारी काम करने आ रहे हैं, वह दहशत में काम कर रहे हैं और ज्यादातर कर्मचारी संक्रमित हुए हैं और संक्रमण के बाद विभिन्ना बीमारियों से कुछ ग्रसित हो गए हैं।

सामान्य ड्यूटी नहीं कर पा रहे हैं। आखिर प्रबंधन क्या चाहता है। प्रबंधन की क्या मंशा है, किस दिशा में लेकर जा रहा है संयंत्र को और अपने कर्मचारियों अधिकारियों का भविष्य। यह समझ से परे हैं।

प्रश्न यह उठता है क्या किसी कंपनी का मुखिया अगर आनलाइन मीटिंग कर बात करता है, तो उस कंपनी के कर्मचारियों का मनोबल कैंसे बढ़ेगा जब उन्हें अपनी जान की इतनी फिक्र है और कर्मचारी साइड में काम करते हुए लगातार संक्रमित हो रहे हैं और अपनी जान गवा रहे हैं।

उच्च प्रबंधन अपने केबिन में बैठकर सिर्फ और सिर्फ अपने नीचे वाले को निर्देशित कर रहा है लेकिन ऐसा कितने दिनों तक चलेगा।

चारों तरफ हाहाकार
एक तरफ जहां संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सेक्टर -9 अस्पताल में बार-बार कर्मचारी यूनियन, ओए अन्य संगठनों द्वारा मांग के बाद भी प्रबंधन जांच के दायरे को नहीं बढ़ा रहा है। जांच केंद्रों को नहीं बढ़ा रहा है एवं आज स्थिति ऐसी है कर्मी जांच कराने के लिए फ्लू क्लीनिक जाने के लिए डर रहे हैं।

नगर निगम एवं राज्य प्रशासन द्वारा जांच केंद्र खोले गए जांच केंद्रों में जाकर जांच करा रहे हैं। अस्पताल के भीतर जितने भी डाक्टर, नर्सिंग स्टाफ, पैरामेडिकल स्टाफ सभी दिन रात मेहनत करने के बाद भी कर्मियों की जिंदगी नहीं बचा पा रहे हैं।

प्राइवेट में जांच कराओ पांच लाख तक का प्रतिपूर्ति ले सकते हैं। यह कैसा आदेश है भिलाई -दुर्ग के चिकित्सालय भरे हुए हैं। रायपुर शहर में बिल्कुल जगह नहीं है, कर्मचारी कहां जाए कहां इलाज कराएं। कर्मचारियों का सवाल है कि प्रबंधन बेहतर चिकित्सालय में रेफर क्यों नहीं करता।

20 दिनों से गंदे पानी की आपूर्ति
पिछले 20 दिनों से ज्यादा समय बीत गया भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा टाउनशिप में गंदा पानी दिया जा रहा है। इस पानी को लेकर लगातार शिकायतें की जा रही है लेकिन प्रबंधन लगातार टालमटोल कर रहा है। पानी की गुणवत्ता बेहतर होने की बात कही जा रही है लेकिन व्यवस्था नही सुधारी जा रही है।

कुछ संगठनों ने बकायदा कलेक्टर तक शिकायत की उसके बाद भी प्रबंधन वाटर सप्लाई में बैठे उच्च पदस्थ अफसरों पर इसे सुधारने के लिए दबाव नहीं बना रहा है या नहीं सुधार पा रहा है। बेकाम के ऐसे अधिकारियों को क्यों नहीं हटाया जाता, उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। आज लगभग डेढ से दो लाख की आबादी गंदा पानी पीने को मजबूर है लेकिन प्रबंधन है कि उस पानी को साफ पानी बता रहा है।

एक तरफ जहां लगातार करोना का संक्रमण बढ़ रहा है दूसरी तरफ लोग इस दहशत में है कि कहीं यह पानी खराब तो नहीं है जिसे पीने से हम बीमार तो नहीं हो जाएंगे, लोग अपने आवासों के आसपास की बोरिंग से पानी भरकर लाकर पी रहे हैं। क्या यही है महारत्न कंपनी की व्यवस्था।

युवा कर्मियों में जबरदस्त आक्रोश
युवा कर्मियों का आक्रोश लगातार दिख रहा है एक तरफ जहां जर्जर क्वाटर, गंदा पानी और इन सबके बाद वेतन समझौते को लेकर लगातार आंदोलन हो रहे हैं। टूल डाउन हो रहा है। कर्मी आक्रोशित हैं लेकिन प्रबंधन टस से मस नहीं हो रहा है।

Back to top button
close