जगदलपुर। बच्चों को स्कूली शिक्षा पहुंचाने के लिए शासन की कोशिशे प्रतिवर्ष नये रूप में सामने आती हैं और विभिन्न तरीकों से बच्चों को स्कूल आने तथा उनके पालकों को अपने बच्चों को स्कूली भेजने के लिए प्रेरित किया जाता, लेकिन शासन की तमाम कोशिशों के बाद भी प्रतिवर्ष शासकीय स्कूलों में पढऩे वाले और प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या घटती ही जा रही है। तात्पर्य यह है कि शासकीय स्कूलों से बच्चों के साथ-साथ पालकों का भी मोह भंग होता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष तीन हजार से अधिक बच्चे बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं और अपने पालकों के साथ अपना काम करना चाहते हैं। इसी प्रकार प्रतिवर्ष ऐसे बच्चे जो अभी पहली कक्षा में ही प्रवेश लेना चाहते हैं उनकी संख्या भी दिनों दिन कम होती जा रही है। बच्चों की पढ़ाई की ओर रूचि न लेेने का परिणाम है कि पिछले दो वर्षो में साढ़े छह हजार से अधिक बच्चें स्कूलों से पढ़ाई छोड़ चुके हैं।
प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या तथा पढ़ रहे अगली कक्षाओं में पढऩे वाले बच्चों की संख्या अब इतनी कम होती जा रही है कि एक कक्षा में मात्र 5 या 6 बच्चे पढ़ते दिखाई पड़ते हैं वहीं पांचवी तक पहुंचते- पहुंचते उस स्कूल में ही कुल बच्चों की संख्या 15-20 तक ही रह जाती है। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015-2016 में प्राथमिक शालाओं में पढऩे वाले बच्चों की संख्या 62687 थी वहीं यह संख्या वर्ष 2016-2017 में घटकर मात्र 57660 रह गई। इस वर्ष भी बच्चों की दर्ज संख्या 56021 बताई जा रही है। स्पष्ट है शासन की कागजों पर योजनाएं चलती हैं इसे धरातल पर क्रियान्वित करने वाली मशीनरी निष्क्रिय है जिससे यह स्थिति बन रही है।
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