कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन में जन्म लेने वाले बच्चों को एलर्जी संबंधी तकलीफ होने की संभावना अधिक है। वैज्ञानिकों ने डब्लिन के रॉटूंडा हॉस्पिटल में मार्च से मई 2020 तक जन्मे एक हजार बच्चों पर अध्ययन के बाद यह दावा किया है।
रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन्स (आरसीएसआई) के बाल रोग विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि जब इन बच्चों का जन्म हुआ तब दुनिया में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। आइसोलेशन का नियम था। साफ-सफाई पर अधिक जोर था।
प्रदूषण का स्तर भी कम था। अब बढ़ती उम्र के साथ जब ये बच्चे इस तरह की चीजों के संपर्क में आएंगे तो इन्हें एलर्जी जैसी स्वास्थ्य से जुड़ी तकलीफ होने की संभावना अधिक है क्योंकि इनके शरीर के लिए ये सब परिस्थितियां नई होंगी।
नए हालात में ढलना मुश्किल होगा इन बच्चों के लिए
आरसीएसआई यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड हेल्थ साइंसेज के पीडियाट्रिक विभाग के प्रो. जोनाथन हौरीहेन का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जिन बच्चों का जन्म हुआ तो उनका शरीर मौजूदा परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने में लगा रहा और भविष्य के लिए तैयार नहीं हो सका। लॉकडाउन के दौरान जन्मे बच्चे को सांस और दूसरे तरह के संक्रमण की तकलीफ नहीं हुई जिस कारण आगे उनकी तकलीफ बढ़ सकती है।
कई कारणों से मजबूत होती है इम्यूनिटी
वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्य हालात में बच्चे जमीन पर खेलते हैं और गंदे भी होते हैं, कई लोगों के संपर्क में आते हैं। परिवार के लोग उन्हें खुली हवा में भी ले जाते हैं। इसका सीधा असर ये होता है कि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। उनके भीतर गट बैक्टीरिया जिसे माइक्रोब कहते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है उसका स्तर भी संतुलित रहता है।
साफ-सफाई के दौर में शरीर की क्षमता कमजोर
वैज्ञानिकों का कहना है कि साफ-सफाई और कीटाणु रहित वातावरण के दौर के चलते शरीर के कार्य करने की क्षमता कमजोर हो रही है। इसी बीच जब कोई व्यक्ति इस तरह की चीजों के संपर्क में आता है तो उसे एलर्जी जैसी तकलीफ हो रही है। आज के समय में एलर्जी संबंधी तकलीफों का दायरा तेजी से बढ़ रहा है और इसका प्रमुख कारण यह है कि शरीर उसे मात देने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाता है।
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