रायपुर। प्रदेश के पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा है कि शासकीय सेवकों के लिए पदोन्नति में आरक्षण आदिवासियों का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए प्रदेश सरकार को पदोन्नति के नये नियम बनाने चाहिए।
उन्होंने कहा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति शासकीय सेवकों को पदोन्नति में आरक्षण के विषय पर प्रदेश की कांग्रेस सरकार गंभीर नहीं है। प्रदेश सरकार के रवैये और उच्च न्यायालय के निर्देशों के पालन ना करने से मप्र की भांति अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शासकीय सेवकों को पदावनत होने या पारिणामिक वरिष्ठता के छीने जाने का खतरा भी व्याप्त होने लगा है।
उन्होंने बताया कि फरवरी 2019 में बिलासपुर उच्च न्यायालय ने जनरैल सिंह निर्णय की रोशनी में छग लोक सेवा पदोन्नति नियम क्र.5 को खारिज कर दिया था तथा प्रदेश सरकार को निर्देशित किया कि जनरैल सिंह निर्णय के अनुरूप पदोन्नति नियम में सुधार कर लें, ताकि पदोन्नति में आरक्षण दिया जा सके।
प्रदेश सरकार ने इस निर्देश को दरकिनार करते हुए अक्टूबर 2019 में फिर से अनुसूचित जाति औऱ अनुसूचित जनजाति वर्ग के पदोन्नति में जनसंख्या के प्रतिशत अनुसार आरक्षण और 100 पॉइंट रोस्टर उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया। दिसंबर 2019 में उच्च न्यायालय बिलासपुर ने इसे अस्वीकार करते हुए स्थगन आदेश दे दिया।
जनवरी 2020 में उच्च न्यायालय बिलासपुर ने पुन: स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवकों की पदोन्नति पर कोई रोक नहीं है, लेकिन पदोन्नति वरिष्ठता सह उपयुक्तता के आधार पर होगी,आरक्षण के आधार पर नहीं। उच्च न्यायालय के इस टिप्पणी से प्रदेश के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के हजारों शासकीय कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है, जो कि आदिवासी बहुल हमारे राज्य के लिए चिंताजनक है।
पूर्व मंत्री ने प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लेते हुये कहा है कि पदोन्नति के लिये सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दरकिनार कर उच्च न्यायालय बिलासपुर में गलत प्रस्ताव देने वाले अधिकारी पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
श्री कश्यप ने प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को सलाह देते हुए कहा है कि जब प्रदेश में आदिवासियों के बलबूते उनकी सरकार बनी है तो फिर क्यों आदिवासियों के अधिकारों के साथ हनन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जनरैल सिंह निर्णय के अनुसार प्रदेश सरकार को प्रत्येक संवर्ग में अजजा/अजा सदस्यों को अपर्याप्तता के आंकड़े जुटाने चाहिए तथा यह भी दिखाना चाहिए कि पदोन्नति से प्रशासन की कुशलता प्रभावित नहीं होगी, क्योंकि शासकीय कर्मचारी उसी विभाग के हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार उपरोक्त आंकड़े जुटाकर छग लोक सेवा पदोन्नति नियम क्र.5 पूरे तथ्यों के साथ नया नियम बनाया जाना चाहिए ताकि उच्च न्यायालय में पदोन्नति नियम को दिए गए चुनौती संबंधित सारे प्रकरण खारिज हो जाए तथा अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति वर्ग के शासकीय सेवकों को पदोन्नति में आरक्षण का अधिकार मिल सके।
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