रायपुर। सुपेबेड़ा में फैली किडऩी बीमारी की परिस्थितियों को लेकर आज सुबह 9:30 से दोपहर 2:30 बजे तक चली कार्यशाला। काफी देरतक विचार-विमर्श और सवाल -जवाब के साथ भू-गर्भीय परिस्थिति एवं वायु प्रदूषण के साथ सभी बिन्दु रखे गए। मिडिया से आये सवालों का जवाब देते हुए डॉ. विवेकानंद झा प्रेसिडेंट, इंटरनेशनल एसोसियेशन ऑफ नेफ्रोलाजी ने कहा की अभी निष्कर्ष पर पहुंच पाना कठिन है।
अध्ययन एवं अध्यापन जारी रखे जाने की आवश्यकता है। बीमारी में चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से कुछ नया नहीं है। डॉ. विजय खेर, पूर्व प्रेसिडेंट, इंडियन एसोसियेशन ऑफ नेफ्रोलाजी ने कहा कि, जागरूकता अभियान के लिए जोर लगाना जरूरी है। सुपेबेड़ा में किडनी के मरीजों से 14 जनवरी को हुई मुलाकात व स्थानीय चिकित्सकों के सभी तरह के तथ्यों को खंगालने के बाद विशेषज्ञ चिकित्सकों के दल ने यह माना कि, यह समस्या सुपेबेड़ा बस में नहीं राज्य के अन्य जगहों पर भी हो सकती है।
उन्होंने आंध्रा एक गांव श्रीकाकुलम का उदाहरण भी दिया एम्स के नेफ्रोलाजिस्ट डॉ. विनय राठौर की केस स्टडी से यह बात समाने आई। उडि़सा के बलांगीर और कालाहांडी में भी किडनी की इस तरह की समस्या पाई गई है। डॉ. विवेकानंद झा ने कहा की बीमारी में चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से कुछ नया नहीं है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, पेन किलर एन्टीबॉयोटिक दवाइयों के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए जागरूकता अभियान आवश्यक है। पूरे देश में इस दिशा में काम भी चल रहा है। डॉ. विजय खेर ने जागरूकता अभियान के लिए जोर लगाने की सलाह दी।
मुख्यमंत्री सलाह महत्वपूर्ण:-डॉ. खरे व डॉ. झा ने 14 जनवरी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से हुई मुलाकात एवं उनकी सलाह को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। मुख्यमंत्री बघेल ने सिविल सोसाइटी को जोड़कर अभियान को आगे बढ़ाने की बात कही है।
पब्लिक सेक्टर चिंतित:-सभी की बातें सुनने एवं समझने के बाद सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग निहारिका बारिक ने कहा की पब्लिक सेक्टर भी इन सारी बातों को लेकर चिंतित है। दो दिवसीय कार्यशाला के बाद हम आश्वस्त हैं कि, अभी सब कुछ अच्छा नहीं है, लेकिन अब हम कुछ अच्छा कर ही लेंगे। हमें विशेषज्ञ चिकित्सकों की जरूरत हर कदम पर पड़ेगी। उडि़सा बॉर्डर में स्थित सुपेबेड़ा में मिलने वाली प्रतिबंधित दवाईयां भी एक बड़ी समस्या है।
इसके लिए हमने उडि़सा शासन से संपर्क भी किया है। उन्होंने विशेषज्ञ चिकित्सकों से एक ड्रग लिस्ट भी मांगी। जिसे पीएचसी एवं सीएचसी स्तर पर उपलब्ध कराने की बात कही। निजी अस्पतालों की सीएमई में शासकीय सलाह में मदद पर विचार करने का आश्वासन दिया। सुश्री बारिक ने कहा ने कि, किडनी के चलने वाले लंबे उपचार के लिए हमारा राज्य प्रतिबद्ध है।
उन्होंने कहा कि सुपेबेड़ा में डॉक्टरों की कमी को दूर करने में निजी चिकित्सकों की मदद मिल रही है और आगे भी यह मदद मिलती रहेगी, ऐसी अपेक्षा है। उन्होंने चिरायु दल के लिए भी आईसीएमआर से टिप्स मांगे है। कार्यक्रम सुश्री बारिक के स्वागत भाषण से शुरू हुआ। सभी चिकित्सकों ने रखी अपनी बात:-संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ.एस.एल आदिले ने भी अपने पक्ष को रखा।
आज हुई इस कार्यशाला में डॉ. प्रभास चैधरी, डॉ. संजीव काले, डॉ. विनय राठौर एम्स, डॉ. अभिरूची कम्युनिटी मेडिसीन मेकाहारा, डॉ. प्रवण चौधरी नेफ्रोलाजिस्ट, डॉ. आर.के. साहू. नेफ्रोलाजिस्ट डीकेएस हॉस्पिटल, डॉ. सुनील धर्मानी नेफ्रोलाजी, डॉ. सुमित चैधरी नेफ्रोलाजिस्ट, डॉ. साईनाथ पत्तेवार नेफ्रोलाजी, डॉ. सुभा दुबे नेफ्रोलाजी ने पूरी परिस्थितियों पर अपना-अपना पक्ष रखा। चिकित्सा शिक्षा विभाग के डॉ. निर्मल वर्मा भी कार्यक्रम मौजूद रहे। भू-गर्भीय शास्त्री, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी के वैज्ञानिक भी रहे मौजूद भू-गर्भीय शास़्त्री डॉ. निनाद बोधनकर ने सुपेबेड़ा की भू-गर्भीय परिस्थितियों पर अपना पक्ष रखा। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के श्री कोसरिया भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे और सभी पक्षों को सुना।
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