छेरिक-छेरा-छेर मड़कनिन छेरछेरा…माई कोठी के धान ला हेर-हेरा…अरन दरन कोदो दरन, जब्बे देबे तब्भे टरन…छेरछेरा पुन्नी आज…अन्नदान लेने बच्चों की टोली पहुंच रहे हैं घर-घर…

रायपुर। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी पौष पूर्णिमा के अवसर पर आज छेरछेरा पुन्नी का पर्व प्रदेश में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि छत्तीसगढ़ का खास लोकपर्व है छेरछेरा, यह पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है।
रायपुर सहित प्रदेश के सभी शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की टोली सुबह से ही छेरछेरा पुन्नी का दान लेने के लिए टोली बनाकर द्वार-द्वार पहुंची। उक्त अवसर पर युवाओं द्वारा नृत्य एवं लोक गीत के जरिए पर्व को धूमधाम से मनाया जा रहा है।
यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न का दान मांगते हैं। वहीं गांव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं।
लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियां हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगते हैं। वहीं युवकों की टोलियां डंडा नृत्य कर घर-घर पहुंचती हैं।
धान मिंसाई हो जाने के चलते गांव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा मांगने वालों को दान करते हैं। इन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है।
इस त्योहार के दस दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गांवों में नृत्य करने जाते हैं। वहां उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं। इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्राय: गांव छोड़कर बाहर नहीं जाते।
आज के दिन द्वार-द्वार पर ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा’ की गूंज सुनाई देती है। बच्चे द्वार पर पहुंच कर अरन दरन कोदा दरन, माई कोठी के धान ला हेरहेरा जैसे शब्द बोल कर दान लेते हैं। पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह रहता है।
गौरतलब है कि इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके साथ ही रामायण की मंडलियां और पंथी नृत्य करने वाले दल भी छेरछेरा का आनंद लेने तैयार हैं तथा कई दिनों पूर्व से ही इस पर्व मनाने की खासी तैयारी की जा?ती है। पौष पूर्णिमा के पवित्र अवसर सभी एक-दूसरे के जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं।
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