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निर्भया केस में दोषी अब दायर करेंगे क्यूरेटिव पिटीशन… जानिए क्या है क्यूरेटिव पिटीशन… इसके बाद…

2012 के निर्भया दुष्कर्म केस में दोषी अक्षय कुमार सिंह की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि अक्षय की पुनर्विचार याचिका में कोई नए तथ्य नहीं है इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है। वहीं अक्षय के वकील ने कहा कि वह इस मामले को लेकर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर करेंगे।



जानिए क्या होता है क्यूरेटिव पिटीशन और इससे दोषियों को कितनी राहत मिल सकती है…
क्यूरेटिव पिटीशन एक कानूनी शब्द है। यह तब दाखिल किया जाता है जब किसी दोषी की राष्ट्रपति के पास भेजी गई दया याचिका और सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी जाती है। ऐसे में क्यूरेटिव पिटीशन दोषी के पास मौजूद अंतिम मौका होता है जिसके द्वारा वह अपने लिए निर्धारित की गई सजा में नरमी की गुहार लगा सकता या सकती है।

क्यूरेटिव पिटीशन किसी भी मामले में कोर्ट में सुनवाई का अंतिम चरण होता है। इसमें फैसला आने के बाद दोषी किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता नहीं ले सकता है।
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याकूब मेमन मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने स्वीकारी थी क्यूरेटिव पिटीशन
1993 के मुंबई ब्लास्ट में दोषी ठहराए गए याकूब मेमन की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई करने की मांग स्वीकार की थी। तब सुप्रीम कोर्ट आधी रात तक याकूब की फांसी की आखिरी याचिका पर सुनवाई करता रहा था। हालांकि बाद में उसकी फांसी की सजा को कोर्ट ने बरकरार रखा था।

किस मामले से आया क्यूरेटिव पिटीशन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराये जाने के बाद भी दोषी ऐसे मामलों में रिव्यू पिटीशन डाल सकता है। अगर रिव्यू पिटीशन भी खारिज कर दिया जाता है तब सुप्रीम कोर्ट अपने ही द्वारा दिए गए न्याय के आदेश को गलत क्रियान्वन से बचाने के लिए या फिर उसे दुरुस्त करने लिए क्यूरेटिव पिटीशन के तहत सुनवाई कर सकता है।



क्या हैं क्यूरेटिव पिटीशन के नियम
याचिकाकर्ता को अपने क्यूरेटिव पिटीशन दायर करते समय ये बताना जरूरी होता है कि आखिर वो किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती कर रहा है। क्यूरेटिव पिटीशन किसी सीनियर वकील द्वारा सर्टिफाइड होना जरूरी होता है, जिसके बाद इस पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट के तीन सीनियर मोस्ट जजों और जिन जजों ने फैसला सुनाया था उसके पास भी भेजा जाना जरूरी होता है।

अगर इस बेंच के अधिकतर जज इस बात से सहमति जताते हैं कि मामले की दोबारा सुनवाई होनी चाहिए तब क्यूरेटिव पिटीशन को दोबारा उन्हीं जजों के पास भेज दिया जाता है।

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