रायपुर। नीति आयोग द्वारा 5 जनवरी 2018 को आकांक्षी जिला विकास कार्यक्रम की शुरूआत की गई। कार्यक्रम का मकसद पिछड़े जिलों में तेजी से बदलाव लाना जो प्रमुख सामाजिक क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम प्रगति और विकास के दौड़ में पीछे रह गए हैं। आकांक्षी जिलों में शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के लिए कार्ययोजना तैयार की गई है।
आकांक्षी जिलों मे गुणवत्ता सुधार के लिए पाठ्यपुस्तकों में लर्निंग आउटकम के अनुरूप आवश्यक बदलाव, राज्य स्तरीय आकलन के माध्यम से आकलन प्रणाली में सुधार, आकलन के फालोअप के रूप में उपचारात्मक शिक्षण, शिक्षकों का सतत क्षमता विकास कार्यक्रम, बच्चों के अध्यापन के दौरान प्रारंभिक कक्षाओं में स्थानीय भाषाओं का उपयोग, सभी प्राथमिक शालाओं में गणित एवं अंग्रेजी किट प्रदान करना, सभी शालाओं में मुस्कान पुस्तकालय, इन जिलों में डाइट की प्राथमिकता, विभिन्न गैर शासकीय संगठनों के साथ कार्य और आदिवासी बच्चों को विशेष कोचिंग एवं जीवन कौशल कार्यक्रम आदि के उपाय किए जा रहे हैं।
आकांक्षी जिलों में गुणवत्ता सुधार के लिए रोड़ मैप तैयार किया गया है। इसमें आकांक्षी जिलों में गुणवत्ता सुधार के लिए एससीईआरटी को नोडल एजेंसी बनाया गया है। उसके नेतृत्व में डाइट के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रम किए जाएंगे।
जिलों में डाइट में अकादमिक स्टॉफ के रिक्त पदों को यथाशीघ्र भरते हुए, उन्हें इन जिलों में गुणवत्ता सुधार के लिए फोकस होकर कार्य करने हेतु उन्मुखीकृत किया जाएगा। जिलों में कार्यरत आकांक्षी जिलों के नोडल अधिकारियों को स्कूल विभाग के साथ कार्य करने के लिए आवश्यक व्यवस्थाकी जाएगी।
इन जिलों में राज्य स्तरीय आकलन के आधार पर सुुधार के लिए ठोस उपचारात्मक शिक्षण कार्यक्रम लागू किए जाएंगे। स्कूल शिक्षा विभाग के समूचे अमले-अकादमी एवं प्रशासनिक दोनों को इन सूचकांकों से एक प्रशिक्षण के माध्यम से अवगत करवाते हुए इनमें सुधार के लिए संवेदनशील बनाया जाएगा।
निर्धारित सूचकांकों में सुधार के लिए समुदाय को भी सशक्त बनाने की दिशा में कार्य किया जाएगा। शाला में उपलब्ध संसाधन जैसे मुस्कान पुस्तकालय और गणित किट के बेहतर उपयोग के लिए प्रेरित किया गया।
शाला संकुल व्यवस्था लागू करते हुए अकादमिक मॉनिटरिंग में कसावट लाते हुए गुणवत्ता सुधार के लिए विभिन्न स्तरों पर जिम्मेदारियां तय की जाएगी। आकांक्षी जिलों के लिए निर्धारित सूचकांक में सुधार के लिए किए गए उपायों में कक्षा पांचवीं से कक्षा आठवीं में संक्रमण दर में कक्षा पांच के प्रधानपाठक एवं शिक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि कक्षा पांच से उत्तीर्ण सभी विद्यार्थी कक्षा छह में प्रवेश ले और नियमित पढ़ाई करें।
कोई भी बच्चा बीच में शाला त्यागी नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार कक्षा आठवीं से कक्षा नवमीं में संक्रमण दर में कक्षा आठ के प्रधानपाठक और शिक्षक यह सुनिश्चित करेंगे कि कक्षा आठ उत्तीर्ण सभी विद्यार्थी कक्षा नवमीं में प्रवेश ले और नियमित पढ़ाई करें कोई भी विद्यार्थी बीच में शाला त्यागी नहीं बनना चाहिए।
हाई स्कूल स्तर पर प्रवेश लेने वाले बच्चों को उनके अध्ययन के लिए सभी सुविधाएं होनी चाहिए। शौचालय सुविधा-लड़कियों के लिए सक्रिय शौचालक की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पंचायती राज एवं स्वच्छ भारत कोष में उपलब्ध बजट से शालाओं में शौचालय निर्माण के लिए पहल किया जाना एवं सभी शालाओं में बालिका शौचालय का होना सुनिश्चित करना।
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