बस्तर दशहरा पर्व के दौरान मावली मंदिर में नौ दिनों तक ऐसा अनुष्ठान किया जाता है, जिसमें पुरूषों का प्रवेश निषेध होता है। दो समाजों की 12 सुहागिन महिलाएं गौरा-गौरी की विधि पूर्वक पूजा करती हैं। दिलचस्प बात यह है कि पूजा के दौरान कक्ष का कपाट बंद रहता है और पुरूषों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित होता है।
9 दिनों के अनुष्ठान उपरांत महिलाओं द्वारा स्थापित कलश व प्रतिमा का नवमीं तिथि को विसर्जन किया जाता है।च्च्रियासतकाल में महिलाएं रानी को प्रसाद खिलाती थींच्च्पौराणिक मान्यता अनुसार देवी गौरी में ही महादेव के क्रोध का शमन करने की शक्ति है।
रियासत काल से दशहरा पर्व व नवरात्रि के दौरान गौरा-गौरी पूजा चल रही है। उस समय 12 जातियों की सुहागिनों को पूजा-अनुष्ठान की जि मेदारी दी गई थी। वर्तमान में धाकड़ व यादव समाज की 12 महिलाओं द्वारा इस परपंरा का निर्वहन किया जा रहा है।
रियासत काल में सुहागिनें विसर्जन के बाद प्रसाद लेकर महल पहुंचती थीं। रानी को प्रसाद दिया जाता था। रानी की ओर से व्रतधारी महिलाओं को सुहाग सामग्री वस्त्र व अन्य प्रकार का उपहार प्रदान किया जाता था। सिरासार चौक स्थित मावली मंदिर में गौरा-गौरी पूजा संपन्न की जाती है।
लकड़ी के पाटे पर स्थापित होती है प्रतिमा
नवरात्रि के प्रथम दिन कु हार द्वारा निर्मित मिट्टी से बने गौरा-गौरी की प्रतिमा एक लकड़ी के पाटे पर कलश के साथ स्थापित की जाती है साथ ही केले व आम के पत्तों से बंदनवार सजाया जाता है और गेंहू, धान व चना की भोजली भी उगाई जाती है। इस प्रकार गौरा-गौरी के रूप में भगवान शिव-पार्वती का पूजन नौ दिनों तक चलता है।
अनुष्ठान में खास बात यह है कि पूजा के दौरान केवल सुहागिन महिलाओं को छोड़ पुरूषों का प्रवेश वर्जित होता है, हांलाकि इसके कारण के बारे में कोई स्पष्ट मान्यता ज्ञात नहीं है। नवमीं के अनुष्ठान बाद महिलाएं गाजे-बाजे व शंख ध्वनि के साथ प्रतिमा व कलश विसर्जन करती हैं।
सोमवार को चलेगा आठ पहियों वाला दुमंजिला रैनी रथ
मालवी परघाव पूजा विधान के संपन्न होने के साथ ही मंगलवार को भीतर रैनी पूजा विधान संपन्न होगा। मांई दंतेश्वरी के मंदिर में परंपरा नुसार पूजा विधान संपन्न होने के पश्चात संध्या 5 बजे आठ पहियों वाली दुमंजिला रथ जिसे रैनी रथ कहा जाता है, की परिक्रमा मांई दंतेश्वरी के छत्र आरूढ़ कर की जाएगी।
रैनी रथ का संचालन किलेपाल परगना के गोंड आदिवासियों के द्वारा संपन्न किया जाता है, जिसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई है। भीतर रैनी पूजा विधान तथा रैनी रथ परिक्रमा के पश्चात रात्रि में आठ पहियों वाले दुमंजिला रैनी रथ को चुराकर कुहड़ा कोट ले जाने की परंपरा का निर्वहन भी किया जाएगा।
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