रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के अस्थि रोग विभाग के डॉक्टरों ने करीब डेढ़ वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल महिला मरीज को डेढ़ साल के लम्बे व क्रमबद्ध उपचार के बाद फिर से अपने पैरों में खड़े होकर चलने के काबिल बना दिया।
दुर्घटना में महिला मरीज के कूल्हे की हड्डी, जांघ की हड्डी और पैर की हड्डी बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो गई थी जिससे धीरे-धीरे मवाद आना शुरू हो गया था। अस्थि रोग विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एस. एन. फूलझेले के मार्गदर्शन तथा एनेस्थेसिया विशेषज्ञ डॉ. प्रतिभा जैन शाह के सहयोग से हुए इस ऑपरेशन में डॉ. राजेन्द्र अहिरे, डॉ. सौरभ जिंदल, डॉ. गौतम कश्यप तथा डॉ. अभिषेक तिवारी की मुख्य भूमिका रही।
इस उपचार में सबसे पहले डॉक्टरों ने जांघ की हड्डी को जोड़ा फिर कमर की हड्डी को और सबसे अंत में पैर की हड्डी को इलिजारो तकनीक से जोड़ा। इस विधि से प्रतिदिन एक-एक मिलीमीटर हड्डी को इलिजारो उपकरण के जरिये बढ़ाते हुए कई महीनों के अथक प्रयास के बाद औसतन 8 से 9 सेमी. हड्डी बढ़ाकर मवाद के कारण गली हुई हड्डी के स्थान पर बढ़ी हुई नई हड्डी को जोड़ा।
मरीज की बीमारी को चिकित्सकीय भाषा में इनफेक्टेड गेप नॉन यूनियन फ्रेक्चर टिबिया फिबुला विद मल्टीपल इंजरी कहते हैं। अभनपुर की निवासी मरीज निरंतर फॉलोअप हेतु चिकित्सालय आ रही है। मरीज के मुताबिक, इलाज के उचित प्रबंधन के जरिये ही मैं अपने पैरों में दुबारा खड़ी हो सकी। इन डेढ़ सालों में मेरा इलाज नि: शुल्क हुआ।
क्या है इलिजारो तकनीक
इलिजारो सिस्टम आर्थोपेडिक सर्जरी में उपयोग की जाने वाली बाहरी फिक्सेशन का एक प्रकार है, जो हड्डियों को लंबा या पुनर्व्यवस्थित करती है। इलिजारो तकनीक का उपयोग आमतौर पर जटिल और खुले हुए हड्डियों के फ्रेक्चर या हड्डियों के टूटने पर किया जाता है।
इसका नाम सोवियत संघ के आर्थोपेडिक सर्जन गैवरिल अब्रामोविच इलिजारोव के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस तकनीक को आगे बढ़ाया। इसमें एक बाह्य फिक्सेटर होता है जिसमें स्टेनलेस स्टील या टाइटेनियम के छल्लों या रिंग से हड्डी को फिक्स किया जाता है।
ये छल्ले आपस में एडजेस्टेबल नट के माध्यम से छड़ों से जुड़े रहते हैं। एडजेस्टेबल अर्थात् अपनी सहूलियत के अनुसार इन्हें एडजेस्ट किया जा सकता है। डॉक्टर व स्पोर्ट्स इंजरी विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र अहिरे बताते हैं कि हड्डी और नरम उत्तक शरीर में दुबारा निर्मित हो सकते हैं।
उपचार की इस विधि में कुछ समय बाद हड्डियों की लम्बाई बढऩे लगती है। हड्डियों के बढऩे के कारण जहां पर हड्डी टूट गई है वहां की हड्डी को लम्बा कर सकते हैं। इसमें मनुष्य के स्वयं के शरीर की हड्डी को कट करके ट्रांसपोर्ट करके वहां नई हड्डी को बनाकर प्रत्यारोपित किया जा सकता है। यह तनाव के सिद्धांत पर कार्य करती है।ऑपरेशन करने वाले विशेषज्ञ की टीम में डॉ. एस. एन. फुलझेले (विभागाध्यक्ष), डॉ. विनीत जैन, डॉ. राजेन्द्र अहिरे, डॉ. नीतिन वले, डॉ. प्रणय श्रीवास्तव, डॉ. अभिषेक तिवारी, डॉ. सौरभ जिंदल, डॉ. संजय नाहर शामिल थे।
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