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छत्तीसगढ़ : राशनकार्ड के लिए जम्मू और हिमाचल प्रदेश से लौट रहे पलायन करने वाले मजदूर

रायपुर/बिलासपुर। पलायन करने वाले मजदूर सैकड़ों की तादात में जम्मू और हिमाचल प्रदेश जैसे शहर से छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में तीन दिन तक सफर कर बिलासपुर स्टेशन 24 जुलाई को दोपहर 12.30 बजे पहुंचे।

अपना सामान बोरे में भरे हुए परिवार समेत मजदूरों का रेला स्टेशन से बाहर निकले अपने अपने गांव जाने के लिए सडक़ मार्ग से गंतव्य तक पहुंचने। ये सभी मजदूर जांजगीर, बिलासपुर, बलौदाबाजार – भाटापारा जिले के रहने वाले हैं। ट्रेन में जनरल और स्लीपर कोच में लगभग 250 मजदूर वापस आये हैं। ये सभी राशनकार्ड बनवाने के लिए अपने गांव जा रहे हैं।

मजदूर जम्मू शहर से भी वापस आ रहें हैं। जो दूसरे प्रदेश में कमाने खाने दिहाड़ी मजदूरी करने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में मनरेगा में ज्यादा दिन काम नहीं चलने और कम मजदूरी मिलने की वजह से बाहर जाते हैं। और कृषि कार्य भी एक फसली होने के साथ खेती की जमीन नाम मात्र 1 से डेढ़ एकड़ होने की वजह से परदेस यानी पलायन करने की मजबूरी है।

इस बार भी मानसून की बेरूखी से 75 तहसीलों में सूखे की चपेट से अकाल का यानी खेती किसानी पर संकट मंडरा रहा है। इससे खेतिहर मजदूर और छत्तीसगढ़ के श्रमिकों पर दोहरी मार पढऩे वाली है। छत्तीसगढ़ में कुल खेती का रकबा 48 लाख हेक्टेयर है जब कि औसत 32 लाख किसान परिवार हैं ।



इनके पास औसतन डेढ़ एकड़ कृषि भूमि है। यहाँ सिंचाई सुविधा 40 प्रतिशत लगभग होने से एक फसली मौसम के मेहरबानी पर खेती निर्भर रहती है। छत्तीसगढ़ में खाद्यान सुरक्षा पीडीएस के तहत लगभग 70 लाख परिवारों को एक रुपए किलो में चावल का लाभ मिल रहा है।

हिमाचल प्रदेश से लौट रहीं मजदूर महिला धनिमती केवन्त ने बताया कि उनके परिवार में बेटा 7 वीं, बेटी 12 वीं की पढ़ाई करती हैं गांव में अपने दादा जी के पास रह कर। एक बेटी की शादी भी हो गई है, वे पति के साथ हिमाचल प्रदेश के शहर धर्मशाला में 400 से 500 रुपए की रोजी करती हैं। उनकी सास बुजुर्ग होने से इस साल गर्मी में देहांत हो गया।

बैशाख के महीने में ही मृत्यु भोज का खर्च उठाने के लिए थोडी सी पुरखों से मिली जमीन को भी गिरवी रख दिया। कर्ज उतारने है इस लिए इस साल पलायन कर गए हैं। उन्होंने बताया कि राशनकार्ड नवीनीकरण बनाने को वापस आना पड़ रहा है। वह कसडोल ब्लॉक के मोतीपुर ग्राम की निवासी हैं।

राशनकार्ड बना जरूरी है क्यों कि च्च्चावल, दाल, गेंहू, नमक, मिट्टी तेल, सहित अन्य योजना का लाभ मिलता है। आज तीन दिन का सफर कर बिलासपुर पहुंचे हैं। इनके साथ ही हिमाचल प्रदेश से लौट रहे मजदूर ने भी पलायन का दर्द बयान किया। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में आरक्षित टिकट लेकर सवार कर रहे।


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800 रुपए तक कमाई में से 500 रुपए तक बचत कर लेते हैं। महीने में 15 हजार रुपए तक बचा कर परिवार को चलाते हैं। हर 60 से 70 हजार रुपए तक पैसा कमा कर लाते हैं। इसी पैसे से गाँव में जो मिट्टी का घर था उसको पक्के का मकान बनवा लिए हैं। उनको भी प्रधान मंत्री आवास योजना की राशि 1.30 लाख सरपंच ने खाते में डलवाया है। जम्मू लाल की पत्नी ललीता साहू ने बताया कि अपना गांव प्रदेश छोडक़र जाना मजबूरी है। बाहर निकले से जो पैसा मिलता है उससे परिवार में सास औऱ ससुर सहित 2 बेटी व 2 बेटा का पालन पोषण करते हैं। एक बेटा 9 साल का राम चरण उनके साथ धर्मशाला के सरकारी स्कूल में 3 री कक्षा की पढाई करता है।

उन्होंने कहा कि गांव में मनरेगा का जॉब कार्ड तो बना है लेकिन गांव में 15 महीने दिन से ज्यादा काम ही नही मिलता है । उन्होंने कहा कि राशनकार्ड बनाने के लिए भले ही खर्च लग रहा है। राशनकार्ड बन जाने से हम छत्तीसगढ़ सरकार के आदमी कहलाएंगे । वोट तो गांव में ही करते हैं। सरकारी योजना से आज नहीं तो बाद में कभी काम आएगा। मजदूरों ने कहा राशनकार्ड बनाने के लिए और समय बढ़ाने की जरूरत है। (एजेंसी)



जांजगीर चाम्पा जिले के बिर्रा ब्लॉक के पास ग्राम ताल देवरी निवासी श्रमिक जम्मू लाल साहू ने भी बताया कि नई सरकार आने पर नए राशनकार्ड बनवाना है इस लिए वापस आना पड़ रहा है। राशनकार्ड नवीनीकरण के लिए घर के मुखिया का होना जरूरी है। इसलिए आने जाने के लिए लगभग 5000 रुपए खर्च कर गांव पहुंच रहें हैं।

उन्होंने बताया कि परसो शाम से ट्रेन में बैठे हैं। ट्रेन में लगभग 300 लोग वापस अपने गांव पहुंच रहे हैं। जम्मू लाल ने बताया कि उनका जन्म जम्मू में 45 साल पहले हुआ था इसलिए मां बाप ने नाम जम्मू लाल साहू रख दिया। हिमाचल प्रदेश में किराए का कमरा लेकर पिछले 12-15 सालों से रोजी मजदूरी करने जाते हैं। जहां धर्मशाला शहर के पास ही खनियारा में रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं। जिससे पति पत्नी को रोज 800 रुपए की मजदूरी मिल जाती है।

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