रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के एडवांस कॉर्डियक इंस्टीट्यूट (एसीआई) के कैथलैब में सोमवार व मंगलवार का दिन दिल के मरीजों के नाम रहा। सोमवार को जहां बच्चों के हृदय में जन्मजात छेद (एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट) को बंद करने के लिये एएसडी डिवाइस क्लोजर तथा वेंट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट डिवाइस क्लोजर प्रोसीजर किये गये।
वहीं मंगलवार को इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी अध्ययन के द्वारा दिल की बीमारी एरिथमिया (अतालता) को रेडियोफ्रीक्वेंसीएबलेशन के माध्यम से ठीक किया गया। ये सभी प्रोसीजर एसीआई के विभागाध्यक्ष व कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव तथा पीजीआई चंडीगढ़ के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मनोज कुमार रोहित ने मिलकर किये।
कुल 16 मरीजों का इलाज किया गया। सभी मरीजों का इलाज आयुष्मान योजना के अंतर्गत तथा स्मार्ट कार्ड के माध्यम से हुआ। क्या है डिवाइस क्लोजर तकनीक:-कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, सामान्यत जन्म के कुछ महीने बाद हृदय की दोनों मुख्य धमनियों के बीच का मार्ग स्वत: बंद हो जाता है लेकिन किसी-किसी केस में ऐसा नहीं होता और वह मार्ग खुला रह जाता है जिसे सामान्य भाषा में दिल में छेद होना तथा चिकित्सकीय भाषा में एएसडी यानी एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट कहते हैं।
इस विकार से ग्रस्त लोगों को तेज चलने, सीढ़ी चढऩे के दौरान सांस फूलने, चक्कर आने, कमजोरी महसूस होने की समस्या होती है तथा शारीरिक विकास सामान्य लोगों की अपेक्षा कम होता है। एएसडी में डिवाइस क्लोजर टेक्नीक से दिल के छेद को बंद किया जाता है।
एएसडी डिवाइस क्लोजर एक छतरीनुमा डिवाइस होता है जिसमें दो छतरियां तथा बीच में एक नलिकानुमा हिस्सा होता है जिसे कैथलैब द्वारा एक नली के रूप में हृदय में छेद तक पहुंचाया जाता है। जहां वह एक छतरीनुमा आकार में छेद को दोनों ओर से बंद कर देता है।
इस उपचार तकनीक की खासियत है कि एएसडी डिवाइस क्लोजर लगाकर बिना चीर-फाड़ के दिल के छेद को बंद किया जाता है और मरीज को दूसरे दिन ही छुट्टी दे सकते हैं। यह एक इंटरवेंशन प्रोसीजर है अर्थात् नसों के अंदर ही अंदर की जाने वाली प्रक्रिया। जिसमें जांघ की नस द्वारा बिना चीरे के दिल का छेद बंद कर दिया जाता है और मरीज दूसरे दिन से ही अपने काम पर जा सकता है।
दिल के निचले कक्षों में
वीएसडी यानी वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट एक आम हृदय दोष है, जिसमें दिल के निचले कक्षों (निलय) के बीच असामान्य संपर्क की वजह से छेद हो जाता है। वेंट्रिकुलर सेप्टल दोष लक्षणों में कम खाने, वजन ना बढऩे, और तेजी से सांस लेने के लक्षण शामिल हो सकते हैं।
जन्म के कुछ समय बाद ये छेद अपने आप बंद हो जाते हैं लेकिन कई बार ऐसा नहीं होता और छेद बंद करने के लिए ऑपरेशन या कैथेटर पर आधारित प्रक्रिया की जरुरत पड़ती है।
संगीत के ताल की तरह धड़कनों की होती है ताल
जिस तरह से संगीत में लय व ताल (रिदम) होते हैं। ठीक उसी तरह से हृदय जब धड़कता है तो उसकी भी एक लय व ताल होती है लेकिन अगर किसी बीमारी की वजह से आपके हृदय की ताल बिगड़ जाती है तो उसे अतालता यानी ताल का बेताल होना अर्थात् एरिथमिया या एरिदमिया कहते हैं।
चिकित्सकीय भाषा में कहें तो एरिथमिया हृदयगति की दर से संबंधित समस्या है। इसका अर्थ है कि हृदय बहुत तेजी से धड़कता है, या बहुत धीमे धड़कता है या अनियमित पैटर्न से धड़कता है।
जब हृदयगति सामान्य से बहुत धीमी होती है तो इसे ब्रेडीकार्डिया कहते हैं। एरिथमिया के लक्षणों में शामिल हैं तेज और धीमी हृदयगति, धड़कन रुकना, चक्कर आना, सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, पसीना आना इत्यादि। सामान्य हृदयगति वापस पाने के लिए उपचारों में दवाएं, इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी, प्रत्यारोपण योग्य कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर(आईसीडी) या पेसमेकर या सर्जरी शामिल हैं।
इन मरीजों का हुआ उपचार
दुर्ग से आयी स्निग्धा त्रिपाठी, कबीरधाम से आये घनश्याम चौधरी , भिलाई के थामेश्वर , मुंगेली के मुकेश बंजारे, बिलासपुर के धनंजय सरकार, कोरिया के राजेश सोनी, जशपुर की नूरजहां, रायपुर की दानेश्वरी साहू, चांपा के कृष्णा कश्यप तथा अन्य।
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