
रायपुर । नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम के तहत प्रसवकाल के दौरान महिलाओं में होने वाले मानसिक अवसादों की पहचान कर इलाज करने के लिए प्रदेश के जिला, सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत डॉक्टरों की दो दिवसीय ट्रेंनिग कि आज शुरुआत हुई ।
निम्हान्स बेंगलुरु से पहुंची प्रोफेसर डॉ. चंद्रा ने बताया कि दुनियाभर में गर्भावास्था के दौरान तथा प्रसव के बाद अवसाद और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बहुत आम हैं। विकासशील देशों में हर 5 में से एक महिला तथा विकसित देशों में करीब हर 10 महिला में एक महिला में गर्भावस्था के दौरान तथा प्रसव के बाद मानसिक तौर पर अस्वस्थता पायी जाती है। भारत में, गर्भावस्था के दौरान अवसाद और तनाव की दर 10-12 प्रतिशत है जबकि प्रसवोत्तर अवस्था में यह 15 से 20 प्रतिशत के बीच है।
इस बीमारी को लेकर सबसे बड़ी चुनौती अवसादग्रस्त गर्भवती महिलाओं की सेहत को लेकर जागरूकता की समस्या है। पीडि़त महिलाओं में से 0.8 प्रतिशत ही इलाज के लिए अस्पताल में डॉक्टर के पास पहुंच पाती है। इसका प्रभाव से गर्भावस्था में घबराहट, कोख में पल रहे बच्चे के ब्रेन पर असर पड़ता है।
बच्चे का वजन कम और समय पूर्व प्रसव जन्म जैसी समस्याओं का कारण बनती है। इलाज के अभाव में महिलाएं आत्म हत्या जैसे कदम उठा लेती हैं। गर्भावस्था के दौरान अवसाद और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्यायें समय से पहले और कम वजन के बच्चों पैदा हो सकते है।
प्रसवोत्तर में, अगर माँ उदास रहती है, तो बच्चे की स्तनपान कराने की संभावना कम होती है जिससे शिशु का विकास प्रभावित होता है। गंभीर मामलों में मां आत्महत्या का प्रयास भी कर सकती है और कभी-कभी ऐसी स्थितियां भी हो जाती हैं जहां मां शिशु को नुकसान पहुंचा सकती है ।
डॉ गीता देसाई ने बताया कि केंद्र सरकार ने मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट में संशोधन करते हुए मानसिक रोगी के लिए अस्पताल में महिला के साथ उनके 3 साल के बच्चे को साथ में भर्ती रखने का नियम है ताकि माँ और बच्चे के बीच मातृत्व का एहसास बना रहे।
डॉ माधुरी ने बताया कि हम उपचार के लिए महिलाओं की पहचान, स्क्रीन और संदर्भ के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य में पदस्थ डॉक्टरों और प्रसूति चिकित्सकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। हम उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में पूछने के बुनियादी कौशल प्रदान करेंगे और एक एल्गोरिथ्म विकसित करेंगे जिससे वह स्वयं भी इसका उपचार करने में सक्षम हों , तथा समझ सकें की कब ऐसी महिलाओं को संदर्भित करना चाहिए।
एमजीएम हॉस्पिटल मुंबई से आई डॉ सुभांगी डेरे ने बताया कि गर्भावस्था में अवसाद व तनाव के कई कारण हो सकते हैं। इसमें महिला के पारिवरिक स्थिति, गरीबी, आर्थिक संकट, पति पत्नी के बीच लड़ाई, पति का शराब सेवन, घर के एक कमरे तक ही महिला को सीमित कर बाहरी दुनिया से अलग करना, महिला में उदासी, अंदर से खुश नहीं रहना, घबराहट व सपने में डरना, नींद नहीं आना, अनचाही गर्भावस्था और लिंग-हिंसा ऐसे विकार रोगी की पहचान के लिए प्रमुख लक्षण हैं।
केरल के बाद देश में छत्तीसगढ दूसरा प्रदेश होगा जहां राज्य शासन ने प्रसव के दौरान मानसिक विकारों से गुजरने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता से लिया है। इस कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ महेंद्र सिंह को नियुक्त किया गया है।

यह भी देखें :
पद्मश्री सम्मान पाने वालों को मिलेगा 15 हजार रूपए…समान्य प्रशासन विभाग ने जारी कि बजट राशि






