रायपुर। डॉ. भीमराव अम्बेडकर अस्पताल के कार्डियक इंस्टीट्युट (एसीआई) के कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभाग के डॉक्टरों ने एब्डोमिनल एओर्टिक एन्युरिज्म नामक बीमारी का ऑपरेशन करके एक मरीज की जान बचाई। इस बीमारी में पेट की मुख्य धमनी गुब्बारे के समान फूल जाती है तथा ऑपरेशन न होने पर धमनी के फूटने की वजह से मरीज की तुरंत मृत्यु हो जाती है।
इस ऑपरेशन को एओर्टो बाई इलायक बाईपास सर्जरी कहा जाता है। कार्डियोथोरेसिक एवं वैस्कुलर सर्जन व विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं उनकी टीम द्वारा यह जटिल एवं हाईरिस्क सर्जरी की गई। मरीज की स्थिति सामान्य है और उसे भी किया जा रहा हैं।
बताया गया है कि भिलाई निवासी, व्यवसाय से ट्रेवल सर्विस में काम करने वाले 52 वर्षीय श्री लिंकन क्रिस्टियान 4 महीनों से कमर दर्द से परेशान थे। उन्होंने लोकल डॉक्टरों से परामर्श किया एवं किडनी स्टोन के लिए इलाज कराते रहे। बहुत दिनों तक आयुर्वेदिक इलाज भी करवाया पर कुछ आराम नहीं मिला। बल्कि स्थिति और बिगड़ गई।
कमर के दर्द के साथ-साथ अब पेट में भी दर्द प्रारंभ हो गया था एवं कई दिनों तक पेट साफ नहीं होता था। धीरे-धीरे पेट में बड़ा सा उभार आना प्रारंभ हुआ तो भिलाई के किसी डॉक्टर ने सीटी स्केन करवाया उसमें पता चला कि उसको पेट की मुख्य धमनी में गुब्बारे के समान फुलाव हो गया है एवं उसके फूटने की संभावना है।
उन्होंने बहुत से डॉक्टरों का परामर्श लिया और सभी ने कहा कि उनको क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर या अपोलो चेन्नई ले जाओ, छत्तीसगढ़ में इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इसी दौरान उनकी पत्नी किरण क्रिस्टियान को पता चला कि ए.सी.आई. में खून की नसों एवं फेफड़ों से सम्बन्धित बीमारियों का ऑपरेशन होता है।
उन्होंने बिना समय गंवाएं मरीज को तुरंत एसीआई के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के पास लेकर आए। सीटी स्केन देखकर डॉ. कृष्णकांत साहू को समझ आ गया था कि यह पेट की मुख्य धमनी जिसे एब्डोमिनल एओर्टा कहते हैं, उसका गुब्बारेनुमा फूलाव है जो फटने की स्थिति में है डॉ. साहू ने तुरंत मरीज को भर्ती कर उसके ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने वाली मेडिसीन प्रारंभ किया जिससे कि एन्युरिज्म को फूटने से बचा सके। बीमारी का कारण:-धमनियों में कोलेस्ट्राल का जमना जिसको एथेरोस्केरोसिस कहा जाता है। स्मोकिंग, तम्बाकू का सेवन। सिफलिस की बीमारी, कनेक्टिव टिश्यू डिसआर्डर जैसे मारफैन सिंड्रोम, वंशानुगत – यदि पिता को यह बीमारी है तो बच्चों में 25 प्रतिशत चांस है। चोट लगना भी एक कारण है। पुरूषों में महिलाओं की अपेक्षा 9 गुना ज्यादा। सामान्य उम्र 50 से 70 के बीच। 1.3 से 3 प्रतिशत लोगों में मिलता है।
क्या होता यदि ऑपरेशन नहीं होता:-
महाधमनी का यह गुब्बारानुमा फूलाव धीरे-धीरे साइज में बढ़ते जाता है एवं अधिक दबाव के कारण यह गुब्बारे की तरह फूट जाता है और मरीज की मृत्यु निश्चित है। एक बार पता चलने के बाद इसका फॉलोअप जरूरी है।
इस बीमारी के लक्षण:-सामान्यत: साइज छोटा होने से कोई लक्षण नहीं होता परंतु जैसे-जैसे एन्युरिज्म का आकार बढ़ते जाता है तो कमर में दर्द प्रारंभ हो जाता है। जो किडनी स्टोन के दर्द की तरह होता है एवं और ज्यादा होने पर पेट के ऊपर धड़कता हुआ गुब्बारेनुमा गांठ दिखाई देता है।
कई बार यह किडनी को भी दबा देता है जिससे मरीज किडनी फेल्योर के लक्षण के साथ आते हैं या फिर पैरों में खून के थक्के के कारण पैर में गैंगरीन हो जाता है। ऐसे हुआ ऑपरेशन डॉ. कृष्णकांत ने बताया कि सर्वप्रथम मरीज के रिश्तेदारों को समझा दिया गया था कि यह बहुत ही ज्यादा हाईरिस्क केस है।
कई बार ऑपरेशन में लेने के पहले या फिर ऑपरेशन के दौरान एन्युरिज्म के फूटने से मरीज की मृत्यु हो जाती है परंतु मरीजों को एसीआई की टीम पर विश्वास था इसलिए उन्होंने हां कह दिया। फिर 8 16 मिमी. का वाई आकार का डेक्रॉन ग्रॉफ्ट मुम्बई से मंगवाया गया। 6 यूनिट ब्लड का इंतजाम करवाया गया। 5 जून को मरीज को ऑपरेशन में लिया गया।
इस ऑपरेशन में मरीज के पेट को खोल कर अंतडिय़ों को बाहर निकालने की कोशिश की गई परंतु पेट के अंदर अंतडिय़ां इस एन्युरिज्म से इस तरह चिपकी हुई थी कि उसको निकालना नामुमकिन हो गया था। फिर हमने ऑपरेशन का तरीका बदल दिया। इसमें मुख्य धमनी को ऊपर और नीचे विशेष इन्स्ट्रमेंट की सहायता से बंद कर दिया जिससे मुख्य धमनी में खून के प्रवाह को नियंत्रित किया गया।
क्लैंप लगाने के बाद गुब्बारेनुमा एन्युरिज्म सेक को निकाल दिया गया एवं अंतडिय़ों एवं किडनी को एन्युरिज्म सेक से अलग कर दिया गया। उसके स्थान पर 8 16 मिमी. का वाई आकार का डेक्रॉन ग्राफ्ट लगाया गया। जिससे पेट के अन्य भागों एवं दोनों पैरों में रक्त प्रवाह प्रारंभ हो गया। इस प्रक्रिया को एओर्टो बाई इलियक बाईपास कहा जाता है। यह ऑपरेशन 5 घंटे तक चला एवं ऑपरेशन के दौरान 5 यूनिट ब्लड की आवश्यकता पड़ी तथा ऑपरेशन के बाद 3 यूनिट ब्लड लगाया गया।
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