चीन एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र में पुलवामा हमले के गुनहगार जैश-ए-मोहम्मद आतंकी मसूद अजहर का सुरक्षा कवच बन गया जिससे भारतीयों में चीन के खिलाफ गुस्सा है। सोशल मीडिया पर भारतीय चीनी सामान के बहिष्कार की मांग कर रहे हैं।
चीन पिछले 10 सालों में मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक आतंकी घोषित करने की राह में 4 बार रोड़ा बन चुका है। जब भी पड़ोसी देश चीन के साथ तनाव की स्थिति पैदा होती है, अक्सर चीनी वस्तुओं पर पूरा बैन लगाने की अपील होने लगती है। वहीं, ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने चीनी वस्तुओं पर 300 फीसदी टैरिफ लगाने का सुझाव दिया है ताकि उनके सामान की खपत को हतोत्साहित किया जा सके।
क्या भारत चीनी वस्तुओं पर बैन लगा सकता है? अगर भारत ऐसा करता है तो देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा और क्या तब चीन पर दबाव बनाने में भारत कामयाब हो पाएगा?
सबसे पहले तो भारत के हाथ विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों से बंधे हैं। WTO किसी भी देश को आयात पर भारी-भरकम प्रतिबंध लगाने से रोकता है। 2016 में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने खुद कहा था कि भारत विश्व व्यापार संगठन के नियमों की वजह से चीनी वस्तुओं पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।
निर्मला सीतारमण ने कहा था, ‘अगर हमें किसी देश की कुछ चीजें पसंद नहीं आती हैं तो केवल इस वजह से आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। हम एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगा सकते हैं लेकिन इसके लिए भी निर्धारित तरीके से आगे बढ़ना होगा और डंपिंग साबित करना होगा।’
दूसरी तरफ ये गारंटी नहीं है कि चीनी सामान के बहिष्कार से चीन के रुख में तब्दीली जरूर आएगी। भारत आर्थिक रूप से चीन के लिए बहुत कम अहमियत रखता है क्योंकि चीन ने व्यापार के मामले में किसी एक देश पर निर्भर ना होकर कई देशों पर निर्भर है। 2017 में चीन के कुल निर्यात में भारत का सिर्फ 3 फीसदी ही योगदान है। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भी भारत की अर्थव्यवस्था का 5 गुना है।
2017-18 में चीन 76.2 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा साझेदार है लेकिन व्यापार की स्थिति पूरी तरह से चीन के पक्ष में जाती है। भारत चीन से करीब 76 अरब डॉलर की वस्तुओं का आयात करता है जबकि चीन को केवल 33 अरब डॉलर का निर्यात करता है।
2011-12 में भारत-चीन के बीच व्यापार घाटा -37.2 अरब डॉलर था जो पिछले 6-7 सालों में 40 अरब डॉलर से भी ज्यादा हो चुका है। व्यापार के संतुलन के साथ-साथ भारत को यह भी ध्यान देना होगा कि चीन ज्यादातर वैल्यू एडीशन वाली चीजें जैसे मोबाइल फोन, प्लास्टिक, इलेक्ट्रिकल्स, मशीनरी और उपकरणों का निर्यात करता है जबकि भारत चीन को कच्चा माल जैसे- कॉटन और खनिज ईंधन का निर्यात करता है।
ऐसा माना जाता है कि चीन की तुलना में भारत ज्यादा मजबूत स्थिति में है क्योंकि भारत चीनी मोबाइल फोन के लिए बड़ा बाजार उपलब्ध कराता है। यह बात सच है कि चीन अपने मोबाइल फोन्स का सबसे ज्यादा निर्यात भारत को करता है। 2018 में 8.9 अरब डॉलर का निर्यात हुआ। चीन के 2018 के कुल मोबाइल-टेलिफोन निर्यात में भारत का योगदान सिर्फ 3।7 फीसदी ही है।
इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय बाजार चीनी कंपनियों के लिए एक बड़ा मौका है लेकिन भारत ही चीन का एकमात्र बाजार नहीं है। जबकि इसके विपरीत, भारत चीनी कंपनियों पर बहुत ज्यादा निर्भर है।
2017 के डेटा के मुताबिक, भारत के कुल टेलिफोन आयात में 71.2 फीसदी आयात चीन से किया गया। 2018 की अंतिम तिमाही में भारत के कुल मोबाइल फोन की खपत में 44 फीसदी चीन का हिस्सा था। इन आंकड़ों को देखें तो दोनों देशों के बीच यह व्यापार असंतुलन चीन के पक्ष में ही है।
कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर भारत ही चीनी सामान का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जैसे- फार्मा, फर्टिलाइजर्स और ट्रांजिस्टर। इन सामानों का आयात भारत में बड़े स्तर पर होता है और इन क्षेत्रों में लगभग भारत का एकाधिकार है। लेकिन चीन से भारत में ज्यादा महंगी वस्तुओं का आयात नहीं होता है यानी चीन इन सामानों के बाजार को बड़ी आसानी से दूसरे देशों में शिफ्ट कर सकता है।
उल्टा ऐसा करने पर भारत के व्यापारियों को थोड़ी मुश्किलें झेड़नी पड़ सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, 2017 में चीन भारत के कुल ट्रांजिस्टर आयात में 81।9 फीसदी हिस्सेदार था, अगर भारत ट्रांजिस्टर पर बैन लगाता है तो सस्ते चीनी ट्रांजिस्टर्स को महंगे ट्रांजिस्टर्स से बदलना पड़ेगा। नतीजा यह होगा कि अधिकतर इलेक्ट्रानिक उत्पाद महंगे हो सकते हैं। हालांकि, भारत के बैन से चीन के इन बाजार को थोड़ी-बहुत चोट जरूर पहुंचेगी।
चीनी वस्तुओं का बहिष्कार या पूर्ण प्रतिबंध लगाने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। ये उम्मीद करना कि अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान में अरबों डॉलर लगाने के बाद चीन उससे दूरी बनाएगा, बेकार है। चीन घरेलू बाजार को नुकसान भले पहुंचने दे लेकिन वह अपनी अरबों डॉलर की परियोजना को खतरे में नहीं डालेगा। अगर चीन पर दबाव बनाना है तो भारत को चीन के साथ आयात-निर्यात में कायम असंतुलन को पाटने की कोशिश करनी होगी।
प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, “अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भारत के साथ व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि पीएम मोदी ने भारत के साथ ट्रेड सरप्लस को दोगुना होने दिया और अब यह करीब 60 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत का यूएस के साथ ट्रेड सरप्लस इसका आधा ही है लेकिन ट्रंप द्विपक्षीय व्यापार में संतुलन के लिए भारत पर दबाव बनाते हैं।”
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