रायपुर. पं. जवाहरलाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय, रायपुर से सम्बद्ध डॉ. भीमराव अम्बेडकर स्मृति चिकित्सालय के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी विभाग में हाल ही में 42 वर्षीय एक युवक के छाती की पसली में स्थित ट्यूमर की सर्जरी कर तथा आर्टिफिशियल पसली लगाकर नई जिंदगी दी गई।
मरीज अभी स्वस्थ्य है तथा डिस्चार्ज कराकर घर जाने को तैयार है। एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू व उनकी टीम द्वारा की गई यह सर्जरी आधुनिकतम सर्जरी में से एक है क्योंकि बीमारी के दौरान खराब हो गई पसली को निकालकर टाइटेनियम प्लेट के द्वारा कृत्रिम पसली का निर्माण करना सर्जरी की विशेषता रही।
छाती के निचले हिस्से में उठता था तेज दर्द
42 वर्षीय युवक नकुल कुमार (परिवर्तित नाम) दो महीने से बायें छाती के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत कर रहा था। जांच करने पर मालूम हुआ कि वहां पर उभार सा उठा हुआ है। सीटी स्केन करने पर पता चला कि उसके छाती के नीचे बायें भाग की 8 वीं व 9 वीं पसली में ट्यूमर है। यह ट्यूमर पूरी पसली को कमजोर कर दिया था एवं उसको हर सांस में तेज दर्द महसूस होता था। यह ट्यूमर आस-पास की पसली के साथ-साथ डायफ्रॉम एवं हार्ट की झिल्ली को चपेट में ले रखा था।
तेजी से बढ़ने वाला ट्यूमर
ट्यूमर की बायोप्सी करायी गई जिसमें पता चला कि वह ट्यूमर बहुत ही ज्यादा तेजी से बढ़ने वाला (हाइली अग्रेसिव) है। इसको मेडिकल भाषा में “कॉन्ड्रोसार्कोमा ऑफ रीब” कहा जाता है। फिर मरीज को आपरेशन के लिये तैयार किया गया एवं दो यूनिट ब्लड की व्यवस्था भी की गयी।
टाइटेनियम प्लेट लगाकर छाती को दिया सपोर्ट
12 फरवरी यानी 8 दिन पहले यह ऑपरेशन किया गया जिसमें ऑपरेशन में 3 घंटे लगा। इस ऑपरेशन में मरीज के 7 वीं, 8वीं एवं 9वीं पसली को काट कर निकाल दिया गया।
डायफ्रॉम एवं हृदय की झिल्ली से ट्यूमर को काट कर अलग किया गया एवं हृदय की झिल्ली (पेरीकार्डियम एवं डायफ्रॉम) को रिपेयर कर दिया गया। ट्यूमर का वजन 900 ग्राम एवं साइज 20X6 सेंटीमीटर है। तीन पसली निकालने से छाती में बहुत ज्यादा गेप आ गया था इसलिए 8वीं पसली की जगह में टाइटेनियम की प्लेट जिसकी लम्बाई 18 सेंटीमीटर थी, लगाई गई। सामान्यतः इस मेटल प्लेट का उपयोग अस्थि रोग सर्जन टूटी हुई हड्डी को जोड़ने के लिए करते हैं।
इस आर्टिफिशियल पसली को लगाने से मरीज के छाती का आकार बेडौल नहीं हुआ एवं भविष्य में उसको सांस लेने में दिक्कत नहीं होगी। डॉ. कृष्णकांत साहू कहते हैं यदि हम यह टाइटेनियम प्लेट नहीं लगाते तो मरीज की छाती एक तरफा यानी बायें भाग की तरफ झुक जाती एवं छाती की दीवार को कोई सपोर्ट नहीं होने के कारण छाती का वह हिस्सा बेडौल होकर लटकने लगता एवं मरीज की सामान्य स्थिति में आने के लिए बहुत समय लगता। आज इस मरीज को डिस्चार्ज करने वाले हैं।
एसीआई में हर प्रकार की आधुनिकतम पद्धति से फेफड़ों एवं नसों का इलाज होने लगा है। इस सर्जरी में कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ एनेस्थेटिस्ट डॉ. ओपी सुंदरानी व टीम की भूमिका रही।
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