देहरादून के रहने वाले मेजर चित्रेश बिष्ट शनिवार को नौसेरा सेक्टर में शहीद हो गए। वे आतंकियों के लगाए IED विस्फोटक को नष्ट करने में जुटे थे, तभी धमाका हुआ और उनकी जान चली गई। सात मार्च को ही उनकी शादी तय थी, लेकिन उससे पहले ही शनिवार को उनका पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा हुआ देहरादून पहुंचा। बेटे की शहादत पर पूरा परिवार मातम में डूबा है।
नौशेरा में आतंकियों द्वारा बिछाई गई आईडी को निष्क्रिय करते समय घायल ठोकर वीरगति को प्राप्त हुए मेजर चित्रेश सिंह बिष्ट को सोमवार को देहरादून में आखिरी विदाई दी जाएगी। सीआरपीएफ के जवानों पर हुए आतंकी हमले से पहले ही जहां देश में शोक और गुस्सा है, वही भारतीय सेना के मेजर चित्रेश बिष्ट ने आईडी निष्क्रिय करते समय बहादुरी और शौर्य की वह मिसाल कायम की जो कभी नहीं भूली जा सकेगी।
7 मार्च को होने वाली थी शादी
पहली आईडी को निष्क्रिय करने के बाद दूसरी आईडी निष्क्रिय करते समय धमाका हो गया, जिसमें मेजर चित्रेश घायल हो गए। बाद में उनकी मौत हो गई। शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट के घर में शोक का माहौल है।
7 मार्च को मेजर चित्रेश की शादी होने वाली थी और उनके पिता एसएस बिष्ट और उनकी मां बेटे को सेहरा बांधने की तैयारी कर रही थीं। बेटे ने कहा था कि वह जल्दी घर आएगा लेकिन रविवार को तिरंगे में लिपटा उनका पार्थिव शरीर देहरादून के मिलिट्री अस्पताल के शव गृह में लाया गया।
पिता, मां और दोस्तों से किया था ये वादा
चित्रेश ने अपने पापा से कह गया था पापा मैं लौटूंगा।। आप शादी की तैयारी करना।। मुझे थोड़ी देरी होगी। उसने अपनी मां से कहा था।। मम्मी सरहद से लौटकर तुम्हारे लिए नई साड़ी ले आऊंगा।। वही साड़ी तुम मेरी शादी में पहनना। मेजर ने अपने दोस्तों से वादा किया था कि शादी के लिए घर आउंगा।। और दोस्तों तुम सब खूब मस्ती करना। रिश्तेदार-नातेदार खुश थे। मेजर बन चुके बेटे चित्रेश बिष्ट की 7 मार्च को ही शादी होने वाली थी।
28 फरवरी को घर आने वाला था चित्रेश
घर में तैयारी भी करीब-करीब हो चुकी थी। तमाम रिश्तेदारों, मेहमानों, दोस्तों को शादी का बुलावा भी भेजा जा चुका था। सब तैयारी में थे कि उनका दिलेर बहादुर चित्रेश LoC से लौटेगा और सात फेरों के साथ वो 7 मार्च को जिंदगी के सुनहरे सफर पर निकल पड़ेगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था।
घरवालों का इंतजार इतना लंबा हो गया है कि अब वो कभी नहीं लौट पाएगा। मेजर चित्रेश के आने में महज 8 दिन बाकी थे। सेना से उनकी छुट्टी मंजूर हो चुकी थी। 28 फरवरी को दोस्त स्वागत की तैयारी भी कर चुके थे, लेकिन बेटा 28 से पहले ही अपने घर लौटा।। वो भी तिरंगे में लिपटा हुआ। सबको रुलाता। सबको तड़पाता हुआ।
किसी भी चुनौती से नहीं डरते थे चित्रेश
मेजर चित्रेश के साथ अफसर बने मेजर जितेंद्र रमोला ने आजतक से बातचीत की और गमगीन आंखों से अपने शहीद दोस्त के शौर्य की तारीफ करते रहे। मेजर रमोला ने कहा कि चित्रेश किसी भी चुनौती से नहीं डरते थे।
मेजर चित्रेश के परिवार की हिम्मत बनाने के लिए परिवार रिश्तेदार समेत पूरा इलाका उनके देहरादून आवास के बाहर भारत माता की जय और मेजर चित्रेश अमर रहे के नारे लगाते रहे। मौत की परवाह किए बिना मेजर चित्रेश सिंह बिष्ट लड़ते रहे और तब तक लड़ते रहे जब तक थी जान।
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