जगदलपुर। बस्तर के आदिवासी अब साप्ताहिक बाजारों में एक-एक मुर्गे पर पचास हजार से लेकर लाख रूपये तक के दांव लगा रहे हैं। इस खेल में शामिल होने शहरी लोग पहुंच कर पैसा लगा रहे हैं। मनोरंजन का खेल अब बाजारों में जुएं का खेल बन गया है।
बस्तर की संस्कृति सट्टे में बदल गई है। पहले मेले मड़ई में मुर्गा लड़ाई और नाट देखना लोगों का शौक होता था, लेकिन अब हाट बाजारों में अलग से मुर्गा बाजार भरने लगा है। इन दिनों पामेला और बड़े आरापुर के मुर्गा बाजार में हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ रही है तथा मुर्गा बाजार में पैर रखने तक की जगह नहीं होती है। मुर्गा लड़ाई देखने वाला हर व्यक्ति दो से लेकर हजार रूपए तक दांव लगाता है।
एक-एक राऊंड में लाखों के रूपए के दांव लगने लगे हैं। लड़ाकू मुर्गे के पैर में काती बांधकर निर्धारित बाड़े के अंदर मुर्गा लड़वाते हैं और लड़ाई में जीतने वाला मुर्गे का मालिक हारे हुए व्यक्ति का मुर्गा लेकर शान से गांव वापस लौटता है। विजेता मुर्गे का स्वामी बाजार में अपने गांव वालों को सल्फी तथा शराब पिलाकर जीत का जश्र मनाता है और मुर्गे को बाजार में बेच देता है या घर ले जाता है।
मुर्गा बाजार में जमकर शराब, सल्फी और लांदे की बिक्री होती है तथा खुले आम खिड़खिड़ी का खेल होता है। बड़े आरापुर गांव सहित अन्य गांव में प्रतिबंध के बावजूद खुले आम खिड़खिड़ी शराब की बिक्री तथा मुर्गा लड़ाई में सट्टे का कारोबार लम्बे समय से चल रहा है। वहीं इसे लेकर बाजार स्थल पर आए दिन मारपीट और लड़ाई झगड़ा भी होता है।
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