रायपुर। छत्तीसगढ़ में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष को लेकर राजनीति गर्मा गई है। आलाकमान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद प्रदेशाध्यक्ष की कमान किसी आदिवासी नेता को देने की चर्चा जोरों पर हैं। बस्तर-सरगुजा के आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी को मिली करारी हार को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है।
कहा जा रहा है कि आदिवासी कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिए किसी आदिवासी नेता को ही यह जिम्मेदारी मिल सकती है। प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाने के बाद इसकी संभावना प्रबल हो गई है। इस दौड़ में केदार कश्यप, रामविचार नेताम, लता उसेंडी और ननकीराम कंवर का नाम आगे आ रहा है।
विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार के बाद पार्टी में नेतृत्व बदलने की मांग उठने लगी है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह इस प्रदेश अध्यक्ष के दौड़ में सबसे आगे थे। लेकिन हाई कमान ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर प्रदेश की सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया है। इससे प्रदेश में रमन युग का अंत भी कहा जा रहा है।
भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में पिछले सप्ताह ही रमन सिंह की भूमिका तय हो गई थी। उसके बाद आदिवासी नेताओं ने नए सिरे से दौर भी शुरू कर दी थी लेकिन कोई सीधे तौर पर दावेदारी नहीं जाना चाहता। गुरूवार शाम दिल्ली रवाना होने से पहले पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि हमारे यहां दावा पेश करने की परंपरा नहीं है।
पार्टी पूछेगी तो अपनी बात रखूंगा। उन्होंने कहा आदिवासी समाज से पहले भी अध्यक्ष रहे हैं। मौका मिलेगा तो कोई भी इस जिम्मेदारी को निभा लेगा। बताया जा रहा है कि इस दौड़ में केदार कश्यप, रामविचार नेताम लता उसेंडी और ननकीराम कंवर का नाम आ रहा है।
आदिवासी नेताओं के अलावा दूसरे वर्ग भी अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल हंै। पार्टी सूत्रों की माने तो पूर्व संगठन मंत्री रहे राम प्रताप सिंह का नाम भी दावेदारों में शुमार हैं। उन्हें संगठन चलाने का लंबा अनुभव रहा है। यदि बस्तर को प्रतिनिधित्व देने की बात आती है तो केदार कश्यप का नाम सामने आ रहा है।
प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडे और राजेश मूणत का नाम भी आ रहा है। यदि जातिगत समीकरण आड़े नहीं आता है तो दोनों ही प्रदेश अध्यक्ष के सशक्त दावेदार हैं।
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