पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव बुत्रोस बुत्रोस घाली ने एक बार कहा था कि महिलाएं तब तक बेचैन रहेंगी, जब तक ये दुनिया उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं देगी। अपने अंत की ओर बढ़ रहे साल 2018 में अगर पलटकर एक नजर डालें तो साफ पता चलता है कि हिंदुस्तान में इस पूरे साल कुछ ऐसा ही माहौल रहा। आधी आबादी, पूरे साल किसी न किसी वजह से बेचैन रही। इस बेचैनी के बीच उनके विरोध के स्वर उभरे और देश में विरोध प्रदर्शन भी नजर आए।
छाया रहा # मी टू अभियान (MeToo)
इस साल महिलाओं की बेचैनी का जो मुद्दा सबसे ज्यादा समय तक छाया रहा, वह था # मी टू अभियान। इसकी शुरुआत सितंबर माह में तब हुई, जब पूर्व मिस इंडिया और बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने एक इंटरव्यू में आरोप लगाया कि साल 2008 में फिल्म ‘हॉर्न ओके प्लीज’ की शूटिंग के दौरान फिल्म के कोरियोग्राफर गणेश आचार्य ने पहले से तय स्क्रिप्ट में फेरबदल करते हुए अचानक एक गाने के स्टेप्स बदलवा दिए और बीच गाने में नाना पाटेकर की एंट्री हो गई, जो उन्हें गलत ढंग से छूने लगे।
तनुश्री के मुताबिक जब उन्होंने इसका विरोध किया और शूटिंग छोड़कर घर जाने लगीं तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने उनकी कार पर हमला बोल दिया। इस इंटरव्यू के फ्लैश होते ही भारत में भी न केवल # मी टू अभियान पूरे जोर-शोर से चल पड़ा बल्कि हॉलीवुड के एक हार्वे विंस्टीन की जगह अकेले बॉलीवुड में ही काफी तादाद में हार्वे विंस्टीन निकल आए।
गौरतलब है कि साल 2017 के अक्टूबर माह में हॉलीवुड की एक अभिनेत्री एस्ले जूड ने हॉलीवुड के मशहूर निर्देशक हार्वे विंस्टीन के खिलाफ काम देने के एवज में यौन शोषण का आरोप लगाया था। एस्ले जूड ने अपना यह आरोप सोशल मीडिया में # मी टू के रूप में दर्ज किया था, जिसके कुछ ही दिनों बाद एक-एक कर 50 हॉलीवुड अभिनेत्रियों ने अपने साथ हुई ऐसी ही यौन शोषण की घटना को लेकर सामने आईं।
इनमें सलमा हायक, ग्वेंथ पाल्ट्रो, एलिसा मिलानो जैसी अभिनेत्रियां भी शामिल थीं। हॉलीवुड का यह भंडाफोड़ तो फिल्म निर्देशक तक ही सीमित रहा, लेकिन जब भारत में # मी टू अभियान शुरू हुआ तो उसकी परिणति विदेश राज्यमंत्री एम.जे.अकबर की केंद्र सरकार से इस्तीफे तक जा पहुंची।
चर्चा में रहा ट्रिपल तलाक का मुद्दा
आधी दुनिया के मामले में साल 2018 इस लिहाज से भी ऐतिहासिक रहा कि इसी साल 19 सितंबर 2018 को ट्रिपल तलाक बिल को पास कराने के लिए मोदी सरकार को अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। गौरतलब है कि 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिपल तलाक को अवैध करार दिए जाने के बाद केंद्र सरकार को जिम्मेदारी दी गई कि वह छह महीने के भीतर इस संबंध में कानून बनाए।
नरेंद्र मोदी सरकार ने इस संबंध में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018 बनाया, जो लोकसभा में पास हो गया। लेकिन राज्यसभा में पास नहीं हो सका, जिस कारण इस साल सितंबर माह में मोदी सरकार को अध्यादेश के रास्ते से इसे लागू करवाना पड़ा, क्योंकि कानून बन जाने के बावजूद ट्रिपल तलाक के मामले में किसी तरह की कमी नहीं आई। सरकार के मुताबिक बिल तैयार करने के बाद अगले छह महीने के अंदर 400 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए।
हिंसा की शिकार होती रहीं महिलाएं
साल 2018 में आधी दुनिया को बेचैन करने वाली एक ऐसी रिपोर्ट आई जो सिर्फ चौंकाती ही नहीं एक बड़ी चिंता पैदा करती है। 11 नवंबर 2018 को बड़ोदरा के गैर-सरकारी संगठन सहज ने ‘इक्वल मीजर्स 2030’ के साथ मिलकर एक रिपोर्ट पेश की, जिसके मुताबिक 15 से 39 साल की 27 फीसदी भारतीय महिलाएं पुरुष हिंसा का शिकार होती हैं। सहज ने यह निष्कर्ष राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के आधार पर निकाला।
सहज की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर वर्ग की महिलाओं को घर में हिंसा की शिकार होना पड़ता है। इसी क्रम में 27 नवंबर 2018 को संयुक्त राष्ट्र ने भी एक दिल दहला देने वाला अध्ययन पेश किया, जिसके अनुसार दहेज रोकथाम के तमाम कानूनों के बावजूद आज भी भारत में बहुत बड़ी संख्या में महिलाएं दहेज हत्या का शिकार हो रही हैं।
हालांकि इस संबंध में मादक पदार्थ एवं अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) ने कोई अलहदा आंकड़ा तो नहीं पेश किया लेकिन जो एक साझा आंकड़ा सामने आया है, उसके मुताबिक साल 2017 में 87,000 महिलाएं अपने घर के करीबी लोगों द्वारा मारी गईं।
यौन शोषण को लेकर शेल्टर होम्स
साल 2018 में शेल्टर होम्स में लड़कियों के यौन शोषण का मामला भी सुर्खियों में रहा, जो इस साल जुलाई में बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित शेल्टर होम के जरिए सामने आया। जिसके बाद एक-एक कर आधे दर्जन से ज्यादा ऐसे शेल्टर होम्स की खौफनाक हकीकत सामने आई। इस तरह देखा जाए तो साल 2018, आधी दुनिया को बेचैन करने वाला साल रहा। जनवरी से लेकर दिसंबर में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक महिलाओं से संबंधित तमाम ऐसी खबरें रह-रहकर डराती रहीं, जिनकी किसी सभ्य समाज में कल्पना नहीं की जा सकती
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