महासमुंद। खेतों में फसल कटाई के बाद अब जंगली हाथी धान खाने के लिए बस्तियोंं, खलिहानों व सब्जी बाडिय़ों में घुस रहे हैं। रविवार की बीती रात तीन हाथियों के दल ने खलिहान व बाड़ी में घुसकर धान और केले की फसल को नुकसान पहुंचाया।
हाथी भगाओ फसल बचाओ समिति के संयोजक राधेलाल सिन्हा ने बताया कि तीन हाथी का दल मोहकम में विचरण कर रहा है। बीती रात मोहकम के मोहन सिन्हा के खलियान में घुसकर धान और बाद बाड़ी में लगी सब्जी व केले को चट कर दिया।
किसान यशवंत खलिहान में एक झोपड़ी बनाकर अपना धान सुरक्षित रखा था। वहां भी तीन हाथी का दल प्रवेश कर झोपड़ी को नुकसान पहुंचाते हुए रखे धान को खा लिया। सुबह होते ही ये तीनों हाथी मरघट नाला चले गए। वर्तमान में तीन हाथी मरघट नाला के पास विचरण कर रहे हैं।
ज्ञात हो कि सिरपुर व पिथौरा क्षेत्र में हाथियों की आमद से ग्रामीण परेशान है। हाथियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पिथौरा क्षेत्र में 5 हाथी विचरण कर रहे थे। कुछ ही दिन पहले 15 हाथियों का दल ओडिशा से पिथौरा क्षेत्र के जंगलों में पहुंचे है।
वहीं सिरपुर क्षेत्र 22 हाथी का समूह विचरण कर रहा है। फसल हानि के साथ जनहानि भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। वन विभाग हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है। सिरपुरवासियों को जंगली हाथियों से मुक्ति नहीं मिल पा रहा है।
हाथी भगाओ फसल बचाओ समिति के संयोजक राधेलाल सिन्हा ने बताया कि हाथियों का एक समूह अमलोर व बोरिद क्षेत्र में विचरण कर रहा है। शनिवार को महिला की मौत को बाद आसपास के ग्रामीण दहशत में है। जंगल जाने के लिए अब ग्रामीण कतरा रहे हैं। इधर, ग्रामीणों में आक्रोश है।
ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग द्वारा ग्रामीणों को हाथियों का लोकशन नहीं देने के कारण जन हानि हो रही है। जबकि विभाग ने समूह के एक हाथी को रेडिया कालर पहनाया है। वहीं वन अफसरों का कहना है कि ग्रामीणों को अलर्ट किया जाता है।
आधी रात मचाते है तबाही
समिति के संयोजक राधेलाल सिन्हा का कहना है कि रेडियो कालर पहनाने से फसल व जनहानि थम नहीं रहा है। इधर, रात्रि गस्त के दौरान भी वन कर्मचारियों के पास मिट्टी तेल के अलावा कुछ नहीं रहता है।
गौरतलब है कि धान फसल की कटाई के बाद अब हाथियों को भोजन नहीं मिल पा रहा है। भोजन की तलाश में हाथी खेतों के बजाए अब खलिहान व सब्जी बाड़ी में प्रवेश कर रहे हैं। बाडिय़ों में घुसकर अब सब्जी व केले की फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। तीन हाथी रात में मरघट नाला से निकलते है। तबाही मचाकर सुबह होते ही फिर नाला की ओर चले जाते हैं।
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